SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०७) करीतप कीजे हुसीयार लाल रे । सर्व सुख स्वर्ग निवार्णना पामें केसरी विलास लाल रे॥ बी० ॥५॥इति बीजनी सकाय संपूर्ण ॥ अथ पांचमनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ कपूर हुवे अति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ पंचज्ञान पंचमी दिने जी आराधो सुखकार अज्ञान दसा निवारिने जी। पामो ज्ञान उदार रे । प्रांणी सांजलो श्रीजिनवाणि ॥१॥ मति श्रुत अवधि जाणिये जी मनपर्यव वलि धार । लोकालोक प्रकाशवा जी केवल लहो सार रे ॥ प्रां० ॥२॥ मति अचा. वीस नेदथि जी। मानो हृदय मकार श्रुत चवदे वीस कह्या जी। अवधि उ असंख्य प्रकार रे ॥ प्रांग ॥ ३ ॥ मनपर्यव दोय विधे जी ॥ प्रां० ॥ केवल एक प्रकार । एवं ज्ञानवताविया जी । नाणसु मनो हार रे ॥ प्रां० ॥ ४ ॥ नाणी आराधक सर्वथी जी क्रिया देस विचार । नाणी स्वासोस्वासमां जी । नाखे कर्म पिगम रे ॥ प्रां० ॥ ५॥ तप पोसो करी नावसुं जी। तदलय श्कतार सर्व सुख सहि केसरि जी। उतरे नवपार रे ॥प्रां० ॥६॥ इति पांचमनी सफाय संपूर्ण ॥ अथ आठमनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ हांजी आठे महामद वारीये ॥ ए देशी ॥ हांजी प्रवचन माय पालीये । टासीय नव फेरा रे । हांजी माता जाणो हो आपणी । पमत राखे हो पाप केरारे ॥ हांजी ॥१॥ हांजी प्रथम श्यासमिति कहि धारी दमदंत झषि रायाजी। हांजी कर्म हरी मुगतें गया । जेना सुरनर गुण गाया रे ॥ हांजी ॥२॥ हांजी दूजी लाषासमिति कही कालिकसूरि सही जगमां For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy