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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०६) दयालाय॥ २० ॥ मारी ॥ संवत् अढारसे इकवीस । पोस वदी सुन मास ।बीज नबुधवार अनोपम जिनपद वंदन लास॥२१॥ मारीवीन ॥ इति श्रीसीमंधर स्वामी बृद्ध स्तवनं संपूर्णम् ॥ अथ स्वार्थ उपर सझाय ॥ ॥ स्वारथकी सब हेरे सगाई । कुण माता कुण बेनरु नाई॥ स्वा० ॥ १॥ स्वारथ जोजन नुक्त सगाई । स्वारथ बिन कोश पाणी न पाई ॥ स्वा ॥ २ ॥ स्वारथ मा बाप सेठ बनाई। स्वारथ बिन नहु देत सहाई ॥ स्वा० ॥३॥स्वारथ नारी दासी कहाई । स्वारथ बिन लाठी ले धाई ।। स्वा० ॥४॥ स्वारथ चेला गुरु गुरू नाई । स्वारथ बिन नित होइ लमाई ॥ स्वा ॥५॥ समयसुंदर कहे सुणो लोका लुगाई । स्वारथ है नाई परम सगाई। स्वा० ॥६॥ (इति संपूर्णम्) ॥ प्रथम बीजनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ जग जीवन जगवाल हो ॥ ए देशी ॥ बीजे सुविध धर्म आदरो जिम पामो नव पार लाल रे । पंच महाव्रत साधुना घादश श्रावक धार लाल रे ॥ बी० ॥१॥ दोय जेद जाणों नय तणा निश्चयने व्यवहार लाल रे । तेह जे धारे नावसुं पामे मुगतिसु नार लाल रे ॥ बी० ॥॥ शिदा लहो मुनि तुम सहि ग्रहणा सेवणोदार लाल रे । जिम दीपे हो संयम वमो खीजे मोह किराम लाल रे ॥ वी० ॥३॥ संसारीने मुक्ति जीवमा नेद दोय सुखकार लाल रे । लहि हृदय कज पंकजे पालो जीवदया सार लाल रे ॥ बी०॥ ॥ मन वचकाया सुछ. For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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