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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) सफलो गिणे ए। नगवन तप विधि नाखीये ए । नल कहे बोध वरीस । पीहर पट कायना ए ॥ १४ ॥ आदिनाथ अरिहंतना ए। षट् उपवास कहीस । त्रि चौबीहारस्सुं ए। चौथ दोय जिनवीरना ए । अजितादिक बावीस । आणा गुरू शिरवही ए॥ १५॥ पौषधत्रीश त्रीने श्रया। पूजन तिलक चढाय । तारक जगदीसने ए । उद्यापन संघ नक्तिसुं ए। जन्म सफल नलराय । सूधे मन साधीये ए॥१६॥ सुणवाणी समकित गहे ए । पय प्रणमी गुरुवीर । चित्त उमाहीयो ए। इणपर जे जविआदरे ए । पाये चरम शरीर मूल सुखशासता ए ॥१७॥ ( कलश ) श्री शांति दाता त्रिजग त्राता नविक ध्याता सुखकरा । इम सतीय साध्यो तप आराध्यो सुजस बांध्यो शिवधरां । आगमे आखे सुरीय साखे सुगुरु नाखे । सुण यथा । सुछ ध्यावे लविक नावे विजय विमल जिनवर कथा ॥ १७ ॥ इति तिलक तपस्या स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥अथ शोलीये को स्तवन लिख्यते ॥ ॥ वीर जिनेसर नाखीयोरे लाल । सदु ब्रतमें सिरताज । नविप्राणी रे । कषायगंजनतप आदरो रे लाल । इणश्री पातिकजाय नविप्राणी रे ॥ वी०॥ १॥ कोमवरष तप आदरेरे लाल । क्रोधगमावे फलतास नविप्राणी रे । मानकरे जे प्राणियारे लाल । ते जगमें न सुहाय ॥ ज० ॥ वी० ॥२॥ ब्रतमें माया श्रादरी रे लाल । स्त्रीपणो पायो मश्विनाथ ॥ल ॥ रूपपरावर्त कीया घणारे लाल । आषाढ नूति गणिका साथ ॥ ॥ वी० ॥३॥ च्यार कपाय के मूलगारे लाल उत्तम बृ. ६ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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