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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि तल कमसार । संजम (00) प्रमोदसुं॥ स्वयंबर वर मालो रे ॥ पदम ॥४॥ अज्का धिप श्री निषदनो । नल लिखीयो निलामे रे । आनंदसुं पंथ श्रावतां । पूरव पुन्य उघामे रे ॥ पदम० ॥ ५ ॥ मज्कम रयणी तम जरी। मधुर वकुंत इहां वनमें रे । मणि नाले तेज दिनमणी । जाग्रत देखी अहो मनमें रे ॥ पदम ॥६॥ ज्ञान धारी गुरु को मिले । पूरीये एह प्रसन्नो रे । कर्म बले मुनि श्रावीया। परीसह जीतमदन्नो रे ॥ पदम ॥ ७ ॥ पंच जीत पंच पालता । टालता उस्सह सवला रे । संजम शुष्क संजालता । उद्यम शिव सुख कमला रे ॥ पदम ॥ ७ ॥ उहा मणि तेजें मुनि तरुपये रथ थकी स्त्री जरतार देवे तीन प्रदक्षिणा विधिसुं चरण जुहार ॥ ए॥ देशना सुन पावन थया झान सुधारस पाय को तप परनव तिलक है कहिये श्रीमुनिराय ॥ १० ॥ ॥ ढाल ॥२॥ भरत नृप भावसुं ए चाल ॥ ॥ मधुर स्वरे मुनिवर कहे ए नाणी गुरु सुपसाय । दीपक सहू लोकना ए । कर्म सुत्नासुन परजवे ए । इह लव फल निपजाय । करम गति वांकमी ए ॥ ११॥ हिनांण नव प्रागनो ए । नृप सुणे निरमल नाव । समकित साहीयो ए। धर्मवती को नृप वधु ए । जाण्यो हे तत्व प्रस्ताव । साची जिन वाचना ए ॥ १५ ॥ चौथ प्रमुख नृप चुप सुंए । किरिया शुद्ध करी एह । नले चित्त नाव सुंए । नव अंग पूजे तिलक सुंए । चाढे जिन चौवीश । रयण कंचण जम्या ए ॥ १३ ॥ तिलक तिलकसें पामियो ए। समकित एह सतीस । जनम प्रदक्षिणा For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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