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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (SU) aa साचव । तत्व सुधारस पीजे रे || वा० ॥ ए ॥ इ पर तप आराधतां । दुरगति कारण वेदेरे । चवदह र सिरो मणि । जीव गति वेदे रे ॥ १० ॥ वा० ॥ तप आरा धन विधी | आगम वचने जोई रे । जवियण पिण तुमे आदरो | ज्युं जव भ्रमण न होई रे ॥ ११ ॥ वा० ॥ (कलश) श्म सय सुखकर गल खरतर तपे रवि जिम कांत ए । सोना ग्यसूरि मुणिंद इस पर कह्यो पूर्व वृत्तत ए । संवत गरे वरश बिन्नूं नयर श्री वालूच रे । ए स्तवन जणतां श्रवण सुतां सयूल मन वंबित फले ॥ १२ ॥ इति चवदे पूर्व स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ तिलक तप स्तवन लिख्यते ॥ दूहा* सासण देवी सारदा । वाणी सुधारस वेल । बालक हित जणी वगसिये । सुबुधि सुरंगी रेल ॥ १ ॥ नवम अंग जिन पूजतां । मन लहि सुन परिणाम । तप तिलके फल पामियें । दवदंती गुण धाम ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ वीरजिणे सर उपदिसे ए देशी ॥ ॥ कमला जिम कुंम पुरे । जुज बल नरपतिजी मोरे । पदमनी पदम सुवासना । श्वेत गज स्वप्नी मोरे ॥ पदम० ॥ १ ॥ परतख्य फल ए पुन्यना । प्रसवी सुता पूरे मासे रे । दवदंती नाम दीपतों । गुणमणी बुद्धि प्रकाशे रे ॥ पदम० ॥२॥ चौसठ कला विचक्षणा । रूप गुणें करी रंजा रे । देव गुरु धर्म दीपावती । व्रत धारी दृढ बंजा रे ॥ पदम० ॥ ३ ॥ प्रतिमा पूजे श्री सांतीनी देवे दीधी त्रिकालो रे । मात पिता For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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