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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सोले नेद ॥ न ॥ श्म लव लव जमतो थकोरे लाल । जीवपामें बहुखेद ॥ ज० ॥ वी० ॥ ४॥ एकाशण ब्रत जे करे रे लाल । लाख वरष मुख हांण ॥ ॥ नीवी ब्रत दूजो कह्योरे लाल । ए धारो जिनवर वाण ॥ ॥ वी० ॥ ॥ आंबिलनो फल बहु कह्यो रे लाल । उपजे लबधि अपार ॥ ज० ॥ उपवास करतां नावसुंरे लाल । पामें नवनो पार ॥ज वी ॥६॥ इम दिन शोले तप करे रे लाल । पूरण ए ब्रत थाय ॥ न० ॥ देव गुरु पूजा करे रे लाल । तिण श्री पातिक जाय ॥ न० ॥ वी० ॥॥ ए तप आदर श्री करे रे साल । मन वंचित फल थाय ॥ न ॥ नर सुर रिद्धि पिण लोगवे रे लाल । निश्चै मुगति जाय ॥ नवीन ॥ ॥ इति १६ कषाय गंजन तप स्तवनं ॥ ॥ अथ ९६ भगवानका स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ वरतमान चोवीसी वंहुँ । मनसूधे नित मेवरी माई । षन अजित संजव अभिनंदन सुमति पदम प्रनुसेवरी माई ॥१॥ वर० ॥ श्री सुपार्श्व चंऽप्रनु प्रणमुं । सुविधि शीतल श्रेयांसरी माई । वास पूज्य विमल अनंत धरम जिन शांति कुंथु परसंसरी माई ॥ वर ॥२॥ अरजिन मलि अनें मुनि सुब्रत । नमि नेमि पास जिणंदरी माई। चौवीसमा श्री वीर जिणेसर प्रणमुं परमाणंदरी माई ॥ वर ॥३॥ ॥ ढाल २ प्रहशम सूधा साधु नमुं नित एदेशी॥ .. नित नित अतीत चोवीशी नमीये । जेहना नाम प्रगट ए जाण । केवल ज्ञानीने निरवाणी । सागर महाजश विमल सपना For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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