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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०६ ) धरीए । तिहां करी जयतिदुण बत्तीसी पास प्रगट्या तत खिणें । तसु सनानी रे सुखसरीरे धन्य धन्य सहको जलें ॥ तिहां थान थाप्यो सुजस व्याप्यो थयो परचो अति घणो । तेहनें नामें ते वामें गामवास्यो यंणो ॥ १४॥ श्रय महिमा घणी पाश यंजण तणी सुगुरु काया नवपल्लवीए । संघ श्रवे घणा करे वधावणा महियल कीरत विस्तरीए । सुपन जे देवता कोकमा नव हुता सूत्रते सूत्र सिद्धांत नामें । वृत्ति नव अंगनी जेद नव जंगनी रची आचारज तेा गमें। ते तेा गमँ सय पामें श्रासकर जो आवए । बहु जाव जत्ते एक चित्ते सेवतां सुख पावए । एकदा गुरु धरणिंद ध्यानें प्रगट थई पदमावती । श्री जयदेवसुरिंद आगलि । इम कहै सांजल यती ॥ १५ ॥ तवन जे तुझ को मंत्र अतिशय जखो अंति तसु गाहा जे वे कहीए । तेह गुणीये जिहां इंद्र यावे तिहां कष्ट विए तेह गुणवी नहींए । तेह जंगारवी काज संजारवी । तवन महिमा घणीए । समरतां संपदा रोग नामे कदा सदा आवश्यक धुरि जणीए । परिक्रमणा नित न धुरि एह विधि खरतर तीए । इम कही सासणि देव सामणि गई निज थानक जीए । केतले दिवसे देस गुजर सयल मलेवायण थयो । जलो वाम जाणी बिंब आणी । नयर श्री खंजायते यो ॥ १६ ॥ खंजनयर सिरि पास जिसे सरू । दिन दिन दीपे तलवे सरू । जात्र करेवा मुऊ ढुंती रखी । प्रभुमें यो खास सहू फली । मुक यास सफली थईय सांमी जाम जेव्या जगपती । सोजाग सुंदर करो उन्नति करूं एती वीनती । For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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