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अश्वसेन वामादेवी अंगज ध्यान मन तोरा धरूं । करिकृपा सामी सीस नामी सदा तुझ सेवा करूं ॥ १७ ॥ कलश ॥ इम स्तव्यो जण पास सामी नगर श्री खंजाइतै । जिम सुगुरु श्री मुख सुणी वांणी सास्त्र श्रागम संमते । ए यदि मूरति सकल सूरति सेवतां सुख संपए । मन जाव आणी लाज जाणी कुशल बाज पर्यं ॥ १० ॥ इति श्री यंजणपार्श्वनाथजीरो स्तवन संपूर्णम् ॥ * ॥
॥ अथ अष्ट भय निवारण छंद लिख्यते ॥ * ॥ ॥ * ॥ डुहा ॥ सरस वचन दे सरसती ॥ एह अरज अवधार || प्रारथिया पहने नहीं ॥ उत्तम ए चार ॥ १ ॥ हितकरजे मोसु दिवे || दीजे वया रस्स || कवियण पिण शुनें कहे ॥ सखरो घणुं सरस्स ॥ २ ॥ गुण गिरु गौमी धणी पारसनाथ प्रगट्ट || मन सुझे मोटां तणां ॥ गुण गातां गरगट्ट || ३ || बंद नाराच ॥ प्रसिद्धि बुद्धि सिद्धि निद्धि रिद्धि वृद्धि पूरए ॥ कलत्त पुत्त कित्तिवित्ति व ते सनूरये ॥ वियोग सोग रोग लोग विग्ध सिग्ध घायकं ॥ प्रगट्ट देव नित्त मेव सेवो पास नायकं ॥ ४ ॥ गुमांन मोम हत्थ जोक देवकोकि वग्गये । अनूप भूप चूंप धारि श्राइ पाय लग्गये ॥ पहु बहु सुत्ति नित्त सब सोच लायकं ॥ प्र० ॥ ५ ॥ कुबोह लोह प्रोह को मोह मा वयिं ॥ अनंत कांत शांत दांत रूप मैं लकियं ॥ शेष शुद्ध तत्त जुत्त सोये मायकं ॥ प्र० ॥ ६ ॥ विसाल जाल सुबिसाल श्रमचंद बयिं ॥ रउद्दथी रिसाइ जाए एथ आइ रयिं । सुनै कंद गंध कांत कार्ज जोरा
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