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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिथ्यात्व निवारण । अकल श्रनंग अनूप रे ॥६॥ श्री॥ कोई कहे ए काल तणे वस । सकल जगत गत होय रे । काले उपजे विणसे काले । अवर न कारन कोय रे ॥ ७ ॥ श्री ॥ कालेगर्न धरे जग वनिता । काले जनमे पूत रे । काले बोले काले चाले । काले काले घर सूत रे ॥ ॥ श्री० ॥ काले दूध थकी दही थाये । काले फल परिपाक रे ॥ विविध पदारथ काल उपाये । अंतकरे बे वाक रे ॥ ए॥ श्री० ॥ जिन चनवीसे बारे चक्कि । वासुदेव बलदेव रे । काले कवलित कोई न दीसे । जसु करता सुरसेव रे ॥ १० ॥ श्री० ॥ उत्सपणि अवसर्पणि श्रारा । उ जू जूय लांत रे । षट् रितु काल विशेष विचारो । जिन्न भिन्न दिनरात रे ॥ ११॥ श्री० ॥ काले वाल विलास मनोहर । यौवन काला केश रे । बुढा पाणे ढय वलि वलि पुर्बल । सक्ति नहीं लव लेस रे ॥१॥श्री॥ ॥ ढाल ॥२॥ गिरुआ गुण श्रीवीरजीए चाल ॥ ॥ तब स्वनाववादि वदेजी । काल किसु करे रंक । वस्तु स्वन्नावे नीपजे जी। विणसे तेमज निस्संक ॥ १३ ॥ विवेकी जुश्रो जुत्रो वस्तु स्वजाव । ते योग जोवनवती जी । वांकणी न जणें बाल । मूंउ नहीं महिला मुखेजी । करतल ऊगे न वाल ॥ १४ ॥ वि० ॥ विणस्वजाव नवि संपजे जी। किमह पदारथ कोय ॥ अंवन लागे नींबमे जी। वाग वसंते जोय ॥ १५॥ वि०॥ मोर पीउ कुण चीतरे जी। कुण करे संध्यारंग । अंग विविध सवि जीवना जी । सुंदर नयन कुंरंग ॥ १६ ॥ वि०॥ कांटा बोर बंबूलना जी । कुणे अणिया For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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