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( ए) ज्ञाननो। कारण दंग ग्रहंत ॥ दशवैकालिक लगवश् सा. खथी । तनुस्थिरताने तंत ॥ स० ॥१०॥ लघु सजीव सचित्त रजादिनो वारण पुःख संघट्ट ॥ देखी पुंजे रे मुनिवर तेहथी। ए पूरव मुनिवट्ट ॥ ॥ स० ॥ ११॥ पुजल खंध ग्रहण निदेपणा । प्रव्ये जयणा तास ॥ नावे आत्म परिणति नव नवी। ग्रहतां समिति प्रकाश ॥ स० ॥ १२ ॥ बाधक नाव अक्षेष पणे तजे । साधक ले गतराग ॥ पूरव गुण रक्षक पोषक पणे निपजते शिवमार्ग ॥ स ॥ १३ ॥ संयम श्रेणैरे संचरता मुनि । हरे कमें कलंक ॥ धरता समता रस एकत्वता । तत्त्वरमणि निःशंक ॥ स० ॥१४॥ जग नपगारी रे तारक नव्यना। लायक पूर्णानंद ॥ देवचंद एहवा ते मुनिराजना । वंदे पद अरविंद ॥ स० ॥ १५ ॥ इति चतुर्थ श्रादाननिक्षेपणा समिति सकाय सपूर्ण ॥ ॥ अथ पंचम पारिट्ठावणियासमिति सज्झाय लिख्यते ॥
॥चेतन चेतजो रे ॥ एदेशी ॥ पंचमी समिति कहि अति सुंदरु रे । पारिवणीया नाम ॥ परम अहिंसक धर्म वधारणी । मृगु करुणा परिणाम । मुनिवर सेवजो रे । समिति सदा सुखदाय । थिरता नावे संयम सोहाय । धरे निर्मल संवर थाय ॥ मु०॥ ए आंकणी ॥१॥ देह नेहथी चंचलता वधे रे। विकसे पुष्ट कषाय ॥ तिण तनुरागध्याने रमे जी। ज्ञानचरण सुपसाय ॥ मु० ॥२॥ जिहां शरीर तिहां मल ऊपजे रे । तेहतणो परिहार॥ करे जंतु चर स्थिर अणदूहव्या रे। सकल मुगंग वार ॥ मु० ॥ ३ ॥ संयम बाधक श्रात्म विराधना रे।
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