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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२८ ) श्रमण वाचंयमी जी । ते वंदे देवचंद || म० ॥ स० ॥ १३ ॥ इति तृतीय एषणा समिति सजाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ चतुर्थ आदान निक्षेपणा समिति सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ जोलिमा हंसारे विषय न राचियें एदेशी । समिति चोथी रे । चगति वारणी । नाखी श्री जिनराज || राखी परम हिंसक मुनिवरे । चाखी ज्ञानसमान ॥ १ ॥ सहज संवेगी रे समति परिणमे || एकणी ॥ साधन तम काज ॥ श्राराधन ए संवर जावनो । जवजल तारण जहाज ॥ स० ॥ २ ॥ अनिलापी निज श्रात्मतत्त्वना । साखी करि सिद्धांत ॥ नाखी सर्व परिग्रह संगने । ध्यानाकाशी रे संत ॥ स० ॥ ३ ॥ संवर पंचतणी ए जावना । निरुपाधिक प्रमाद || सर्व परियह त्याग असंगता | तेहनो ए अपवाद || स० ॥ ४ ॥ ज्ञाने मुनिवर उपकरण संग्रहे । जे परजाव विरत्त || देह मोही नवि लोही कदा | रत्नत्रयी संपत्त ॥ स० ॥ ९ ॥ जाव अहिंसकता कारण जणी । प्रव्य हिंसक साधि ॥ रजोहर मुखवस्त्रादिक घरे | वरवा योग समाधि ॥ स० ॥ ६ ॥ शिव साधननुंरे मूल ते ज्ञान बे, ते नो हेतु सजाय ॥ ते हारें ते बलि पात्र थी। जयायें ग्रहेवाय || स० ॥ ७ ॥ बाल तरुण नर नारी जंतुनें । नग्न डुगंबा हेतु । तिए चोलपट ग्रही मुनि उपदिसे । शुद्ध धर्म संकेत ॥ स० ॥ ८ ॥ मंश मशक शीतादि परिसह सहे । न रहे ध्यान समाधि | कल्पक आदिक निर्मो हिपणे । धारे मुनि निर्वाध ॥ स० ॥ ए ॥ लेप अलेप नदीना For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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