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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) ॥ माया० ॥ ७ ॥ माया त्याग करो गुरु संगे । कृपाचंद्र सुख बरेली || माया० ॥ ० ॥ इति मायानी सजाय || ॥ अथ लोभनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ राग जर्तरि ॥ लोन तजो जवि प्राणिया लोने सब गुण जावे खोजे सुख नवि हूवे कदा तो किम निज गुण पावे लो० ॥ १ ॥ सागर सेठ बहु लोजीयो नरक गयो निरधार मम्मण तिम बहूलाजन श्रयाडुरगतिना जरतार || लो० ॥ २ ॥ सुजुम चक्री साधन जणी लोन पिशाच ग्रहाणो मध्य समुद्रमां बूकीयो थयो नरकनो राणो ॥ लो० ॥ ३ ॥ सुखम लोज जिहां लगे शिव सुख जिलाषा लोन शत्रु दूरे करी केवलज्ञान प्रकाशा | लो० ॥ ४ ॥ च्यार जेद लोजना का जिएगएधर देवे तेहतजी लहे क्रम श्रकी निज गुणने सेवे ॥ लो० ॥ ५ ॥ च्यार कपाय निवारवा कपाय गंजण तप कीजे कृपाचं सूरि इम नणे वंचित फल लीजे ॥ लो० ॥ ६ ॥ इति लोन सकाय ॥ ॥ अथ दीवालीनी सझाय लिख्यते ॥ ॥ हांरे मारे गम धर्मना साढा पचवीश देश जो ॥ ए देशी ॥ हांरे मारे दीवाली दिन आयो सजनी जाणजो । वीर जिनेश्वर अंतिम चमासी रह्यारे लो ॥ १ ॥ हारे मारे पावापु मां वसीया त्रिभुवन नाथ जो । सोले पहेर लगे देशना दीधी सुखकरुरे लो ॥ २ ॥ हांरे मारे पुन्यपाक्षराजा पूढे सुदानो अर्थ जो । जावी फलको पंचम आरानो सही रे लो ॥ ३ ॥ हांरे मारे गौतम स्वामीने मुक्या बोधन काज जो । अमावसनी रजनी ये प्रभुसिवपद वय रे लो ॥ ४ ॥ हांरे मारे For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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