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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७७) माननी वात । जिम थाय सुख सात । च मे ॥ १॥ मोह महाराजा तणो जी । मान ए अंगज जाण । जाति मदादिक एहना जी। परिकर जाणो सुजाण ॥ च०॥ मे ॥२॥ मान तणे वस जे पड्या जी। तेहज रुट्या संसार । मान त्यागथी बाहूबली जी । पायो केवल सार ॥च ॥ मे ॥३॥ विनय श्री विद्या संपजे जी । समकित लहे सुखकार । चारित्र पाले निरमलो जी । पोहचे मुक्ति मकार ॥ च ॥ मे ॥४॥ रावण राज गमावीयो जी। जुर्योधन मुख लीन । प्रतिविष्णु नरके गयाजी । माननी संगति कीन ॥ च ॥ मे० ॥ ५ ॥ विनय मूल जिनधर्मनो जी। जाख्यो श्रीजिनराज सूरि कृपा चंत्र गुणस्तवेजी । विनय जाणो सिरताज ॥ च० ॥ मे ॥६॥ इति मान सहाय ॥ ॥ अथ मायानी सझाय लिख्यते ॥ ॥ माया विषवेली।। एतो दे घरगतिमां ली। माया विष वेली ॥ ए आंकमी ॥ माया वेलमी मनमां उगी। आर्यव कीले उखेली॥१॥ मायावि०॥ माया काया जगमें कुती ममता मांहि कहेली ॥२॥ माया ॥ कपट दपट करि लोकने धूते । बहू रूपे जर मेली ॥ माया ॥३॥ आषाढ जूति ये माया मूंकी । लही सिव पद नी सेली ॥ माया ॥४॥ मबि जिनेश्वर पूर्व जवमे मित्रथी माया करेली॥ माया ॥ ५॥ स्त्रीतीर्थकर पाम्या तेहथी । उत्तम गुण गण मेली ॥ माया ॥६॥धूतारा बहुमायाकरके धूते जग जन हेली For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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