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( १८० )
या तत खितामजो | कल्याणक निर्वा
पाठावलता गौतम यई जागृत थयारे श्री गौतम स्वामी
लो ॥ ७ ॥ हांरे
चोराव सुरपति एनो व सोकशुं रे लो || ५ || हांरे मारे जाएयो निर्वाणजो । वज्राहत परे मुर्छित लो ॥ ६ ॥ हांरे मारे विविध विलापकरे जो । वीतराग श्रई केवललनि पामीयारे मारे काशी कोसल देश तथा गणराय जो । अढारे मिलि पोसह विधि आदर्योरे लो ॥ ८ ॥ हांरे मारे जाव उद्योत गयां थकां द्रव्य उद्योत जो । रथए मुकीने दीवाली की तिन समेरे लो ॥ ए ॥ हांरे मारे गोतम केवल महिमा करे इंद्रजो । ना बीज जमाड्यो वेहनी ये जाइनें रे लो ॥ १० ॥ हांरे मारे दीवाली नो बकरी चौवीहारजो । सोल पहोरनो पोसतप आराधयेरे लो ॥ ११ ॥ हारे मारे गुणनो करी पर जाते मंगल काजजो । गौतम स्वामीनुं एकासो करे जावसुं रे लो ॥ १२ ॥ दीवाली पर्व लोकोत्तर लोकी कजो । परसिध थयो कारतिकवदी मासे रे लो ॥ १३ ॥ हांरे मारे पर्वाराधन करो जवि मनबरंग जो । जिनकृपाचंद्रसूरि कहे सुख संपति बरो रे लो ॥ १४ ॥ हांरे मारे० ॥ इति दीवाली सजाय ॥ ॥ अथ श्री पर्युषण पर्वनी सझाय लिख्यते ॥ || देशी यतनी ॥ सखी पर्व पजुषण याव्या । जविजनना मनमां जाव्या । एमां श्रश्रव पांच हटाव्या एतो सर्व जीव सुखपाव्या सनेही पर्व पजुषण सेवो। एतो सेवी शिव सुख लेवो । सनेही पर्व ० ॥ १ ॥ श्रीवीर जिनेश्वर जाखे । ए पर्व सेवो श्रुत साखे । श्रीप्रबाहु स्वामी दाखे । एतो कल्पसूत्र इम
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