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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७१) आखे ॥ स ॥ पर्व० ॥२॥ आठ दीवस अमर पखावो । जिनचैत्ये पूजा रचावो । कल्पसूत्र घरे पधरावो । देवे रात्रि जागो नले जावे ॥ स० ॥ पर्व ॥३॥ रथ हय वर गज सण गारे । साशननी शोना वधारे । वाजिन ध्वनि मनुहारे । वर घोमो सजे दिल सारे ॥ स० ॥ पर्व० ॥॥ आनंबर करीने लावे । श्री कल्पसूत्र शुल नावे । सदगुरुने हाथे जावे। सुहव मिल मंगल गावे ॥ स० ॥ पर्व०॥५॥ सदगुरुनी मीठी वाणी । सुणो चल विह संघ गुण खाणि मनमा अति उवट आणी। संसार तरे नवि प्राणी ॥स० पर्वगा॥श्कवीश वार सुणी जे । पूजापरत्नावना कीजे । उ अच्म चौथकरी जे । सुणी वीर जन्म जस लीजे ॥सापर्व ॥७॥ आषाढ चोमासेथी जाणो। पचास दिवस पर माणो । संवबरी पर्व कहाणो । लाखे श्रीजिनवर जाणो ।स०॥ पर्व ॥ ७ ॥ श्म पर्व आराधन करीये । पंच कारण मनमां धरी । श्री जिनवाणी अनुसरीयें । कृपाचं सूरि जस वरीये ॥ स० ॥ पर्व०॥ ए॥ इति श्री पजुषण पर्वनी सकाय संपूर्ण ॥ ॥अथ बीजनुं चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥विविध धर्म जिनवर कह्यो । साधु श्रावकनो जाण । शिक्षा दोय सेवो सदा । ग्रहणा सेवन आण ॥१॥ धर्म शुक्ल उग ध्यान णे ध्यावो चतुर सुजाण । आर्त रोज दोय परिहो। त्रिकरण शुचि महिरान ॥२॥ अभिनंदन जन्म्या प्रन्नु । सुमति अर चविया । वासु पूज्य श्रया केवली । शीतल शिव सुख वरिया ॥३॥ सीमंधर युगमंधरा । वीस विहर मान होय । राग शेषनो त्याग करी । निश्चय व्यवहार जोय ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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