SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) मनवा बार । विश्वकर बरणवस्थे. सुयो सुहम विचार #३५॥ गति नर दिय पञ्जीका प्रेसकाच नाणे जेहनें क्स संचमनी अहलाच । दसबमें इक केवल दसख श्रवण होय । जय चलव्य अव्यपणो परिषाके जोय ॥ २६ ॥ संमत्त दायक सन्नी असनीय सन्नि । अबहारी थाहारी अखसरी उप्पन्न । अन्य प्रमाणे सिद्ध जीवजन्य होय अनंत । खोग असंखम जीग फासिष्प- होय अवंत ॥२७॥ फरसन खेत्रथि अधिक काल न सिक प्रतीत । सादि अनंती वित जिन भागमकी सुविदीन । प्रतिपाती नाचे नहीं सिझां अंतर जोय । सरव जीवनी जांग अनंतम सदु सिद्ध होय ॥ ४ ॥ दसण नाए जेहमें थे ते दायक जाव । जीवत जेहने वलि परिणामक नाव समाव । सहुथी थोमा बेद नपुंसकथी बे। सिम तेहश्री श्री नर धनुक्रम संखगुप्ता सुपसिछु ॥ श्ए । जे जाएं जीकादिक नात्त तसं सम्मतः । चण जाणंतानें सुयै जे सरधान स । सरब- बिसर मुखबी जाख्यावयक्ष जहत्य । ए बुद्धी जेहने मन सम्मत निचलतत्य ।। ३० ।। अंतर मदुरत एगमात्र करस्यों संमत्त । वर्षपुग्गल परियह नियम संसार निमत्त । उस्सप्पणीय श्रणंत एग पुग्गल परि यह। अनंत अतीत अनागत तदगुणक्यण प्रगट्ट ॥३१॥ श्म नवतत्त जेद पनि जेदे विवरण कीध । श्रावक श्राग्रह कीन सहाय पूरण रसवीध । कोटिक गण मुनसदन प्रकास नदी उपमान।श्रीजिनलाल चंदकुल पूनम चंदसमान ॥३५॥ भयानादिक करिक्रसिंहें परी साख । रसराजमुनि ते For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy