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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) वम्साखानी पमिसाख । ग्यानसारं ते पमिसाखानी सूखममाल। ए नवपद नवरयण विनाणे गूंथीमात ॥ ३३ ॥ संवचरनिश्चय नय विगई प्रवचनमाय । परम सिद्धपद वामगते ए अंक गिणाय । माघ किसन ससिवार मेरु तिथ पूरन कीध । च्यार कथा तजि तत्वकथा नज नर फल लीध ॥ ३४ ॥ इति श्रीनवतत्व नाषागिनत स्तवनं संपूर्ण ॥ ... ॥अथदंडक भाषागर्भित स्तवनं लिख्यते ॥ * ॥ षनादिक चौवीस नमि । तेहनो सूत्र विचार । दंगक रचनाये स्तवं । संखेपे निरधार ॥१॥ नरक सात दंगक पढम । असुरा नाग सुवन्न । विगु श्रगनि दीबोदही । दिसि पवणे थणियन्न ॥॥ पुढवी आऊ तेक वलि । वाऊ वणस्सईकाय । बिति चौरिंदी गन्नधर । तिरि नर तिहां मिलाय ॥३॥ व्यंतर जोइस वेमाणिया । ए दमक चौवीस । एहना पार कहुं हिवे । गणनायें तेवीस ॥४॥ * ॥ वीरजिणेसरनी देशी ॥ * ॥ सरीर श्रोगाहण संघयणे संगण । कोहाई सिदिय दो समुग्धाय प्रमाण । दिछी देसण नाण जोग तिम वलि उपयोग । उपपात वलिय चवण लिई पङत्ति प्रयोग॥१॥ के दिसिनो आहार सन्नि गइ आगइ वेय । दार गाहा जुगनो ए अरथ कह्यो संखेव । हिव तेवीस दारनो रचिस समय अनुसार श्रलप रुची हुं तेहथी कहिसुं श्रखपविचार ॥२॥ * ॥ सूरती महीनानी देशी ॥ * ॥ चौगनय तिरि वाऊ काये च्यार सरीर । मनुष्यमें पांच दमक इकवीस रह्या तिसरीर । For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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