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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५३) नीली काली । वायु महा वाजिंदा हे ॥ ए॥ रवि किरणा कोट रही रज उंट। दिवाकर तेज पिंदा है।कर घोर घटा चिकटा नमटी । अरु बीजू गाजंदा हे । गरमाटा वाटा सुणिया थाटा। ऐरापति लाजंदा हे । हुआ अकाला धुर वरसाला । बीजलियां खिवंदा हे ॥ १० ॥ मोटी धारां सुं आरा बांसु । यों अंबू वरसंदा हे । चो जल खाला नदियां नाला । हेमाला हालंदा हे । दरियाव उलट्टां केतो फुट्टां । पाणी नहि मावंदा है। दिगपाल दहलां धरिय उत्सवां । खोणी पति खिसंदा हे ॥११॥ वमे पाहामां ऊंगी कामां । सकामां ढाहंदा है । समदाहंदी रेल वहंदी । जाणक जग रेखंदा हे । बहुवासर वून जाण किरुका । कुग मन असुरेंदा हे । तेवीशमराया वनमें पाया । कासग्ग कहा करंदा हे ॥ १२॥ उवसग्गाहंदी कोल करंदी। पाबा नहिं मुमंदा । धरि मनमें ध्याना क्रोध न माना । निश्चल ध्यान धरंदा हे । प्रनु नासां ताई नदी भाई तोही नाहि खुनंदाहे । देवाचल जेसा धीर पएसा पावस पीक सहंदाहे ॥ १३ ॥ तिण अवसर वरदां धरणी धरदां । भासण वेग चलंदा है । तिण अवधि प्रयुंजी दी। प्रनुजी । तन मन अति जल संदा हे । तिहां पदमावती देव सकत्ती सुं मिल वेग वहंदा हे । हुयके हेराना वैठ विमाना । पावां आय लगंदा हे ॥१॥ फण नाग हजारां कर विसतारा । बगत्तर ज्यूं गवंदा हे। ले आपण खंधे प्रेम निबंधे । पूरब प्रीत सुखंदा है। इंसाणी नारी सब सिणगारी । जोबन अंग फिल कंदा हे ॥ १५॥ राकापति वयणी मिरगा नयणी । सुंदर रूप सोहंदा हे । अणियाला For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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