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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) सिव अनुसरे ए । आगल बांध्यो आउ । तातें तिहां थकी। तीजे चौथे नव तरे ए ॥१६॥ ॥ ढाल ४ ॥ इण पुर कंबल कोइ न लेसी ए चाल ॥ ॥ पंचम देस विरति गुण गण । प्रगटे चलकमी प्रत्याख्यान । जेण तजे बावीस अन्नद पाम्यो श्रावकपणो प्रत्यद ॥१७॥गुण इकवीस तिके पिण धारे। साचा बारे ब्रत संचारे । पूजादिक षट् कारज साधे । ग्यारे प्रतिमा श्राराधे ॥ १० ॥ भारत रौप्रध्यान हुवे मंद । आयो मध्य धरम आनंद । आठ वरस काणी पुत्र कोक पंचम गुण गणे थिति जोम ॥ १५ ॥ हिय आगे साते गुण गण । इक इक अंतरमहुरत मान । पंच प्रमाद वसे जिण गम। तेण प्रमत्त बनो गुण धाम ॥२०॥थिवर कलम जिन कलप आचार । साधे षट् श्रावस्यक सार । उद्यत चोथा च्यार कषाय । तेण प्रमत्त गुणगण कहाय ॥२१॥ सूधो राखे चित्त समाधे । धरम ध्यान एकांत आराधे । जिहां प्रमाद क्रिया विध नासे । अपरमत्त सत्तम गुण लासे ॥ २२ ॥ ॥ ढाल ५ ॥ मी नदी यमुनाके तीर उडे दोय पंखीया ए चाल ॥ ॥ पहिले अंसे अहम गुण गणा तणें । आरंने दोय श्रेणि संखेपे ते गणें । उपशम श्रेणि चढे जे नर हुवे उपसमी । दपक श्रेणि दायक प्रकृति दश दयगमी ॥ २३ ॥ तिहां चढता परिणाम अपूरब गुण लहे। अच्म नाम अपूरब करण तिणें कहे । सुकल ध्याननो पहिलो पायो आदरे । निरमल मन परिणाम अमिग ध्याने धरे ॥ २४ ॥ हिव अनिवृत्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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