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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३२५) तारमा । कर्म तणे अनुसार ॥ व०॥६॥ इंच आदेशथी श्राश्विनवदित्रयोदशीदीश । हरणेगमेसीसंक्रमण कसा प्रनु नक्तिथी । त्रिशलाकूखैजगीश ॥ २०॥७॥ चनद सुपन त्रिशला जुवै। कट्याणक फल एह । वृधिपाम्या नरेशर सर्व प्रकारथी । जाग्रत श्रयो अतिस्नेह ॥ व० ॥ ॥ चैत्र शुदि तेरस समे । जन्म थयो सुप्रसिद्ध । दिग कुंवरी तिहां तक्षिण सूतिकारजकरे । इंज थावे बहुरिछ । व०॥ए॥ पंचरूपकरी प्रन्नु ग्रही । मेरु शिखर ले जाय। चौसठ सुरपति आवि जनमोत्सव करी । माता पासे गाय ॥ २० ॥१०॥ नंदीसर उन्लव करी। देव गया निज गम।सर्व संपवधितेहथी प्रनुनो थापीयो।वर्धमान शुल नाम ॥व०॥११॥ सिझारथ राजा घरे । वरते मंगल माल । इंजाणि उबरंगरमाने प्रन्नु नणी। करति रंगरसाल ॥ व ॥१२॥ श्रामलकी क्रीमा करे । देव परिक्षा काज हारि गयो देव बालक प्रनु नाम पामीयो । महावीर माहाराज ॥व० ॥ १३ ॥ जोवनवय जिनराजजी। परण्यारमणि मनुहार संसारिक सुख जाणि कृत्रिम जगनाथजी । कृपाचं सुखकार ॥व० ॥१४॥ ॥ढाल २॥ तीसवरस घरमा रह्या ॥मनमोहनजी ॥दीधो वरसी दानरे । जग सोहनजी। माता पिता स्वर्गे गया ॥ मन ॥ प्रतिज्ञा पूरण जानरे ॥ जग ॥ १५ ॥ च्यार निकायना देव मलि ॥ मनः ॥ दीक्षा उडवकीधरे ॥ जग ॥ मिगसर वदि दशमी विनु ॥ मन ॥ सुखकर संजमलीधरे ॥ जग० ॥ १६॥ मन पर्यव ज्ञान ऊपनो ॥ मन० ॥ चलनाणी नगवंतरे॥ जगएकाकी For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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