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(३५३) प्रनु विचरता ॥ मन ॥ करूणा निधिबलवंतरे ॥ जग॥१॥ परिषह रिपुने जीतता ॥ मन ॥ पराक्रमेवमवीररे । जग ॥ तप करता अति आकरो ॥ मन ॥ पाम्यो नवजलतीररे । जग ॥ १७ ॥ बार बरस उद्मस्थ रह्या ॥ मन ॥ ऊपर सार्ध बमासरे ॥ जग ॥ वैशाख सुदि दशमीये ॥ मन ॥ उपनो केवल खासरे ॥ जग ॥ १५ ॥ लोकालोकने जाणता ॥ मन ॥ पावा पुरि जिनराजरे ॥ जगः ॥ संघ चतुर्विध थापिने ॥ मन० ॥ सीधासगदा काजरे ॥ जग ॥२०॥समवसरणमां विराजता ॥ मन ॥ परउपगारि महंतरे ॥ जग ॥ देशना देता नव्यने ॥ मन० ॥ प्राप्तकरे सुख संतरे ॥ जग० ॥१॥ गौतमादि गण धरा ॥ मन ॥ श्यारह मनु हाररे ॥ जग ॥ चन्दसहस मुनिवर हुवा ॥ मनम् ॥ श्रमणी बतीस हजाररे । जग ॥१॥ एक लाख गुणसउसहस ॥ मन ॥ श्रावकनो परिवाररे ॥ जग० ॥त्रण लाख अढार हजार ॥ मन ॥ श्राविका सुविचार रे ॥ जग ॥ २३ ॥ इत्यादिक परिवारथी ॥ मन ॥ परवरिया गुण सार रे ॥ जग ॥ अंतिम चोमासो रह्या ॥ मन ॥ पावापुरी मकार रे । जग ॥२॥ सोल पहर लग देशना ॥ मन ॥ दीधी पर उपगार रे ॥ जग ॥ पुन्य पाल राजा तणा ॥ मन ॥ प्रशनो उत्तर सार रे ॥ जग ।। ॥ २५॥ पंचम आरेना नाव कह्या ॥ मन ॥ सव जीवने हितकार रे ॥ जग ॥ पुन्य पापना फल तणा ॥ मन ॥ अध्यन पचावन सार रे ॥ जग ॥ २६ ॥ त्रीशवलि उत्तर कह्या ॥ मन ॥ मरु देवी अधिकार रे ॥ जग ॥ बहोतर
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