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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ए.) दोहिला । केवली विण नवि लहे ॥ श्रीहंस नुवन सूरिंद बोले। वीतराग एणि परें कदे ॥ ॥ इति नि व्य० स० ॥ ॥ आत्मोपदेश सझाय लिख्यते ॥ सासरीये एम जय रे बाई । सासरीयें एम जश्य ॥ जिनधर्म ते सासरं कहीयें । जिनवर देवते सासरो ॥ जिन आणा सासू रढीयाली । तेना कह्यामां विचरो रे बाई । साम् ॥ १॥ अरांने परां क्यांहि न नमिये । नमतां जस नवि बहीयें रे बाई ॥ सा ॥ ए आंकणी ॥ सीयल स्वन्नाव सोहे घाघरीयो । जीवदया कांचलमी ॥ समकित उढणी उंढीरे कोणी । शंका मेले न खरमी रे बाई ॥ सा ॥२॥ निश्चयने व्यवहार तणा वे। पाये नेउर खलके । मुविध धर्म साधु श्रावकनो कानें अकोटा फलके रे वाई । सा० ॥ ३ ॥ तप तणावे वेरखा बांहे । लगतगे तेजे सारा ॥ ज्ञान परमत तणुं ते अर्चा । मांहे परिणामनी धारा रे बाई ॥ सा ॥४॥ राग सिंदूरनुं की, टोलुं । शियलनो चांदलो शोहे ॥नावनो हार हैयामां लहेके। दाननां कांकण सोहे रे बाई ॥ सा० ॥ ५ ॥ सुमति साहेली साधे लेग्नें। दीये मारग वहीयें ॥ क्रोध कषाय कुमति अज्ञानी । तेहथी वात न करीये रे वाई ॥ सा ॥ ६॥ मिथ्यात्वी पीयरमां न वसीयें । रहेतां अलखामणां श्रश्य ॥ मोहमाया मावतर वीरु । दोहिलो काल निगमीय रे बाई ॥ सा ॥ ७ ॥ अनुजव प्रीतम साथे रमतां । प्रेमे आनंद पद लहियें ॥ विनय प्रजसूरी प्रसादें । जावें शिव सुख लहिये रे बाई॥सा॥७॥ इति स० संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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