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(११५) हुँ॥थयो कंचन पुर रायरे॥९॥ बापसुं संग्राम मांमीयो ॥९॥ साधवी लीयो समजायरे॥९॥३॥ वृषल रूप देखीकरी ॥९॥ प्रति बोध पास्यो नरेशरे ॥९॥ ॥ उत्तम संजम आदखोहुं॥ देवता दीधो वेषरे ॥ ९० ॥४॥कर्म खपाय मुक्तं गया॥ हुं० ॥ करकंडू रिषि रायरे ॥ ९० ॥ समयसुंदर कहे साधुने ॥ हुं०॥ प्रणम्यां पातिक जायरे ॥ हुं ॥ ५॥ इति प्रथम प्रत्येकबुधनी
॥ अथ भरत चक्रवर्ती भावमुनिनी सझाय ॥ ॥जरतजी मनही में वैरागी । मनहीमें वैरागी । नरतजी मन । सहस बत्तीस मुगट ब राजा । सेवा करे वह लागी। चौसम सहस अंतेवरि जाके । तोही न दुवा अनुरागी। जरतजी मनहीमें वैरागी ॥१॥ लाख चोरासी तुरंगम जाके । बन्नु कोम है पागी । लाख चोराशी गजरथ सोहै। सुरता धरमसुं लागी जरत ॥२॥ च्यार क्रोम मण अन्नज ऊपमे । खूण दश लाख मण लागे । तीनकोम गोकुल नित दूजे । एक कोमी हल सागी ॥ जर० ॥ ३ ॥ सहस बत्तीस देस वफ लागी । लए सरबके त्यागी । उन्नु कोम गांमके अधिपति । तोही न हुवा अनुरागी ॥ जर ॥ ४ ॥ नवनिध रतन चनगमा वाजें । मन चिंता सरब लागी । कनक कीरत मुनिवर वंदत है। दीजो मुगतिमें मांगी ॥ जर ॥ ५॥ इति जरतजीका स्वाध्याय ॥
॥ अथ शीता सतीनी सझाय ॥ ॥ जल जलती मिलती घणीरे । कालो काल अपाररे । सुजाण शीता । जाणे केसू फूलियारे लाल राता खैर अंगार रे ॥सु०॥१॥धीज करे सीता सती रे लाल सीलतणे परिः
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