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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१११) ति॥४॥ समकित समकित जग नणे लेद न जाणेजि कोइ जिस घट समकीत ऊपजे ते घट वीरला कोइ । ति० ॥५॥ दान सीयल तप नावना सुधु समकित होय मुक्ति सिंहासन बेसणे निश्चय पावेजि सोय। ॥६॥ इति संपूर्ण ॥ ॥अथ अइ मत्ता मुनिनी सझाय ॥ ॥श्रीअश्मत्ता मुनिवर जूके। करणीकी बलिहारीवे । पट वर्षनके संजम लीनो । वीरवचन चित्त धारीवे ॥ श्री० ॥१॥ विजय नृपति श्रीदेवी नंदन । पोलासपुर अवतारी । अंगग्यार पढे गुण आगर । त्रिविध त्रिविध अविकारी वे ॥श्री ॥ ॥ तप गुण रयण संवत्सर आदिक । करके काय उधारी वे । प्रनु आदेशे विपुलाचल गिरि करी अणसण अति जारी वे॥ श्री० ॥३॥ केवल पाय मुक्ति गये मुनिवर । कर्म कलंक निवारी वे । अढारअमताले तिहिं गिरि ऊपर । कीनी थापना सारी वे ॥ श्री ॥ ॥ वाचक अमृतधर्म सुगुरुके। सुपसायें सुविचारी वे । शिष्य दमाकट्याण हरख धर ॥ गुणगावे अति जयकारी वे॥ श्री० ॥ ५ ॥ इति श्री अश् मत्ता मुनिनी सकाय ॥ ॥ अथ करकंडू प्रथम प्रत्येक बुद्धनी सझाय ॥ ॥ चंपानगरी अतिनली । ढुंवारी लाल । दधि वाहन नूपालरे । कुंवारी लाल । पद्मावती कूखें उपनो ॥ ९॥ कर्मे कीधो चंमाखरे ॥ ९० ॥१॥ करकंडूने करं वंदणा ॥ ९० ॥ पहिलो प्रत्येक बुधरे ॥ हुं ॥ गिरवाना गुण गावतां ॥ ९ ॥ समकित थाये शुधरे ॥ ९० ॥२॥ लाधी वांशनी ताकमी ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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