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( ७४ )
रोग सहु जाय जसु श्रंग फर स्यां सही । प्रथम ते लबधि बे नाम मो सही ॥ ४ ॥ जासु मल मूत्र उषध समा जालीये । बीय विष्पोसही लबधि वखाये । श्लेषम उषधि सारिखो जेनो । तीजी खेलोसही नाम ने तेहनो ॥ ५ ॥ देहना मैथी कोढ दूरे हुवे । चोथी जल्लोसही नाम तेहनो वे । केश नख रोम सदु अंग फरसे सही । रहे नहीं रोग सब्बो सही ते कही ॥ ६ ॥ एक इंप्रिय करी पांच इंडिय तथा । भेद जाणें तिका नाम जिन्ना वस्तुरूपी सहू जाणियें जि करी | सातमी लबधि ते अवधि ज्ञानें करी ॥ ७ ॥
॥ ढाल २ आव्यो तिहां नरहर एं चाल ॥
॥ हिव गुल अढीये ऊणो मानुष क्षेत्र । संज्ञी पंचेंद्री तिहां जे वसय विचित्र । तसु मननो चिंतित जाऐं थूल प्रकार । ते कजुमति नांमें आम लवधि विचार ॥ ८ ॥ संपूरण मानुष क्षेत्रे संज्ञावंत । पंचेद्रिय जे बे तसु मन वातां तंत । सूखम पर जायें जाणें सद् परिणाम । ए नवमी कहीये विपुलमती सुन नाम ॥ ए ॥ जिए लबधि प्रजावे की जाय श्राकाश । ते जंघा विद्या चारण लवधि प्रकाश । जसु वचन सरापे खिए में खेरु थाय । ए लब्धि इग्यारमी यासी विषयक हाय ॥ १० ॥ सदु सूखम वादर देखे लोका लोक । ते केवल लबधि बार मिये सहु थोक । गणधर पद लहिये तेरमी लबधि प्रमाण | चवदम लबधे करी चवदे पूरब जाण ॥ ११ ॥ तीर्थकर पदवी पामें पनरमी लबधि | सोलम सुख दाई चक्रवर्त्ति पदरिद्धि | बलदेव तो पद लहिये सतरमी सार । श्रड्ढारमी
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