SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६०) नवकार सीखव्यो । महा मंत्र गुण बहु जणूए ॥ ५॥ ए कदा योगी एक । समसानेलंगयो । शिवकुमार मनमें धस्योए ॥ नवकारने परनाव सबल संकट टल्यो । सोना पुरसो तिण कस्योए ॥ ६॥ ढाल २ जी॥ चरण करण धर मुनिवर वंदिये ॥ ए देशी ॥ श्रीनवकार तणी महिमा सुणो। पोतनपुर सुनवगमो जी। सेठ सुना तणी सुता श्रीमति । श्राविका धर्मनो कामो जी॥ श्री० ॥१॥ मिथ्यामते किण एक विवहारिये । परणी मनधर रागो जी ॥ धरम नमूंके हिये मन धरी । कलशमें {क्यो नागो जी॥ श्री ॥२॥ सापफीटीने फूल माला थई। महियल महिमा ए होजी ॥ पिउने कुटुंब सह प्रतिबूजव्यो । साचो धर्म सनेहो जी ॥श्री० ॥३॥दिति प्रतिष्ठित बलराजा तिहां । इक दिनबूगे मेहो जी ॥ नदीपूरबीजोरो आवियो । नृपने दीधोतेहो जी ॥ श्री ॥४॥ स्वादलही चिठी राजाकरी । बीजोराने कामो जी ॥ व्यंतर जाकरे नरने तिहां धेबीजोरोतामो जी ॥ श्री० ॥ ५॥ चिठी आवी जिनदास सेउनी । श्रावक शुध विवेको जी ॥ नमस्कार जण बीजोरो ग्रह्यो । बूकव्यो व्यंतर को जी ॥ श्री० ॥६॥ढाल ३ जी॥ नमणी खमणीने मन गमणी ॥ ए देशी ॥ श्री वसंतपुर जितशत्रुराया । जना नामें नारिसुहाया ।। चंग पिंगल चोखो नृपहारा । गणिकाने दीधो मनुहारा ॥ १॥गणिका पहस्यो हारते जाणी। सूलीदीधो चोरते आणी ॥ निज प्रमाद गणिका पलतावे । चोर समीपेनानी आवे ॥२॥ नमस्कार पिंगलने दीधो। तास प्रजावे वंचित सीधो नृपने घर पर अवतरियो । पापी चोर For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy