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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५ए) सोरिसरो संखेसरो । पंचासरोरे ॥ फलोधी थंजणपास ॥ तीन ॥५॥ अंतरिक अजावरो अमीरो रे ॥ जीरावलो जगनाथ ॥ ती० ॥ त्रैलोक्यदीपक देहरो जात्राकरो रे ॥ राणपुरें रिसहेस ॥ ती० ॥६॥ श्रीनामुलाई जादवो गोमीस्तवो रे ॥ श्रीवरकांणो पास ॥ ती० ॥ नंदीश्वरनां देहरां बावन जला रे ॥ रुचक कुंमल चार चार ॥ ती० ॥ ७॥ शाश्वती अशाश्वती । प्रतिमानती रे ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल ॥ती ॥ तीरथ जात्रा फल तिहां होजो मुफ इहां रे । समयसुंदर कहे एम ॥ ती० ॥ ॥ इति तीरथमाला स्तवनं सपूर्णम् ॥ ॥ अथ नवकारतप स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ चोवीसे जिनवर नमी। पंच परमेष्टिसार ॥ परम मंत्र नवकारनी महिमा जणू उदार ॥ १ ॥ ढाल १ ली ॥ मुनिवर आर्य सुहस्ति ॥ ए देशी ॥ समरोश्रीनवकार । सार पूरवतणो। नवनिधि सिदि आपे सदा ए ॥ महिमा मोटी जास । संकट सब टले । मिले मनोरथ संपदाए ॥१॥ अमसठ वरण विख्यात । सातगुरु अदर । नवपद आने संपदाए ॥ सात सागरनां पाप । जाये अरे । संपूरण पांचसयमदाए ॥२॥ पुष्करवर दीपाई । सिझावटगाम । पासे परबत कंदराए ॥ चोमासी पच्चरकाण । करने तिहां रह्या । दमसार नामे मुनीसराए ॥ ३ ॥ नीलजीलणी बेअ । मनसुध नावसुं। नवकार मुनिपासे नणीए। बीजे जवराजसिंह । रतनवतीरांणी। शिवसुख पांम्या कर्म हणीए ॥४॥ रतनपुरी वसो जा । सेठतणोसुत । शिवनामा विसनीघाए ॥ अति श्रादरसुं तात । जास। सके नवनिधि सिदशी ॥ समरो For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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