SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) गनय मणुजनें दीहकालकी सन्ना होय । केशक श्राचारज कहै दिहि वायकी दोय । निश्चय पत्ता पंचिंदी तिर नर जेह । चौविह देवां मांहे. श्रावी ऊप जे तेह ॥ १७ ॥ संखाउ पजत्त पंचिंदी तिरि नर तेम । पजाता जूदग पत्तेय वसई जेम । ए सर्वमें निच्चे सुरनी श्रागति हुंति । पऊत्त संख गनय तिरि नर सग नरके जंत ॥ १० ॥ नरक उदवरत्या नर तिरि उपजे नहुवे सेस । नू अप्प वणस्सईमें नारग विण उपजे असेस । पुढवाई दसपयमें नू बाऊ वण जंति । पुढवाई दस पयमें तेऊ वाऊ उपजंत ॥ १ए॥ तेउ वाऊनो गमण पुढवी पद नवमें दुत । पुढवाई दस पदमें विगल जावंत श्रावंत । सहमें तिर गति आगति मणुश्रा सहुमें जाय । तेढ वाऊथी मरीने जीव मनुज नवि थाय ॥ २० ॥ श्री पुरसे चौविह सुर तिरि नर तीनूं वेद । थावर विगल नारगर्ने एक नपुंसक नेद । पऊत्त मणु वादर अगनि वेमाणिक-तेम । लवण नारग व्यंतर जोईस चौपण तिरि एम ॥१॥ बेइंजी तेइंत्री पृथवीने अप्पकाय । वाऊ वणस्सई अधिक अनुक्रम करि कहिवाय । हे जिन ए सहु लवमें पाम्या वार अनंत । तेहनो अनुक्रम गणितां किम हीन आवे अंत ॥ २५ ॥ नर सुर विण सहु दमग ते गति संयोग । साधो नहीं तुह दंसण कीनो कम्म प्रयोग । सुरमे पिण सण लहि चिरति नपामी मूल । ते सुर जात सहावे देस विरति प्रतिकूल ॥ २३ ॥ श्रारज देस आरजकुल शुद्ध सुगुरु उपदेश । तेहथी तुह दंसनो किंचित पाम्यो लेस । धारक तारक कारक वारक दंसप देव । श्रातम For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy