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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०१ ) मुक्ति मात ॥ २० ॥ हृदय नयन तमे जू सुजाण । टंको जिन कुगुरु ए आण । सगुरु तथा चरण आचरो । जेम नव सायर लीलायें तरो ॥ २१ ॥ जे जिनश्रण वढे निशदीश । ते ऊपर जे नाणे रीश | नवे तत्त्व निरता सर्द है । सूधुं समकितने ते कन्हे ॥ २२ ॥ एवं समकित सूधुं जाए । धर्मकाजनुं म करीश हां। जिनवर पूजा सद्गुरु नक्ति । जावें करवी श्रम शक्ति || २३ || पक्किमणुने फासुं नीर । कीजें धर्म का जे वीर | धर्मे इद्धि सिद्धि घर हंत । धर्मे संकट सवि कह्यु जाजत ॥ २४ ॥ धर्मे सूर्य निरतो तपे । धर्मे पाप करम सवि खपे । धर्मे होये रूपनो योग । धर्म पसायें संपत्ति जोग ॥ २५ ॥ जो गुणेने बहु तप करे । पण समकित सूधुं नादरे । समकित वि ते सहुए फोक । समकित आदर करवुं रोक ॥ २६ ॥ समकित माय बाप संसार । समकित सुख संपत्ति सार । समकित एह धर्मनुं मूल । समकितश्री सह ए अनुकूल ॥ २७ ॥ समकित शद्धि सिद्धि घर घणी । समकित लगें होय सुर धणी । समकित सीके सघलां काज । समकित लगें त्रिभुवननुं राज ॥ २८ ॥ समकित सहितनुं सुो प्रमाण कृष्णरायनुं जुड़े मंमाण । तपवि श्रेणिक राजह धणी । लेशे पदवी अरिहंत ती ॥ २९ ॥ समकित पाले जे नरनार । वली न आवे ते संसार । एम जाणी समकित दरो । सिद्धिरमणी जेम लीला वरो ॥ ३० ॥ इति श्रीसम कितनी सजाय संपूर्णा 1 ॥ अथ सद्गुरु परीक्षारूप श्रीसुगुरु पचशी लिख्यते ॥ || सुगुरुपीठाणे चारें । समकित जेहनुं शुरू जी ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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