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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) हथीयार संवाह्या ॥ ॥ सां० ॥ क्रूर नजर जेहनी घणी। देखतां मरीयें । मुत्रा जेहनी एहवी । तेहथी शुं तरी ॥६॥ सांग ॥ आठ करम सांकल जड्यां । नमे जवही मकारो । जनम मरण नव देखीयें । पाम्या नहीं पारो ॥ ७ ॥ सां० ॥ देव थश् नाटक करे । नाचे जण जण आगें । वेष करी राधा कृष्णनो । वली निदा मांगे ॥ ॥ सां० ॥ मुखें करी वाये वांसली । पेहेरे तन वागा । लावता जोजन करे । एहवा भ्रम लागा ॥ ए । सां ॥ देखो दैत्य संहारवा । श्रयो उद्यमवंतो। हरि हरणाकश मारीयो । नरसिंह बलवंतो ॥ १० ॥ सां० ॥ मच कच अवतार ले । सहु असुर विदास्या । दश अवतारें जूजूश्रा । दश दैत्य संहावा ॥ ११॥ सां० ॥ माने मृढ मिथ्यामति ॥ एहवा पण देवो । फरी फरी अवतार ले । देखी कर्मनी टेवो ॥ १५ ॥ सां० ॥ स्वामी सोहे जेहवो । तेहवो परिवारो । एम जाणीने परिहरो। जिनहर्ष विचारो ॥ १३ ॥ सांग ॥इति ॥ ढाल वीजी। उधव माधवने केहे जो ॥ ए देशी॥ जगनायक जिन राजने । दाखवियें सहीदेव । मुकाणा जे कर्म थी। सारे सुरपति सेव ॥ १५ ॥ ज ॥ क्रोधमान माया नहीं। नहीं लोन अज्ञान । रति अरति वेदे नहीं । गंड्या मद थान ॥ १५ ॥ज०॥ निता शोक चोरी नहीं । नहीं वयण अलीक। मन्चर जय वध प्राणनो । करे तेहे कोक ॥ १६ ॥ ज० ॥ प्रेम क्रीमा न करे कदी । नहीं नारी प्रसंग । हास्यादिक अढार ए। नहीं जेहने अंग ॥ १७॥ ज० ॥ पद्मासन पूरी करी । बेठा अरिहंत । निश्चल लोयण तेहना । नासाग्ररहंत ॥ १७॥ज०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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