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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१एए) जिन मुजा जिन राजनी । दीगग परम नवास । समकित थाये निर्मलु । तपे ज्ञान उजास ॥ १५ ॥ ज० ॥ गति आगति सदु जीवनी । देखे लोकालोक । मनःपर्याय सवी तणा । केवल झान आलोक ॥ २० ॥ ज० ॥ मूर्ति श्रीजिनराजनी। समता नंकार । शीतल नयण सुहामणां । नहीं वांक लगार ॥२१॥ जम् ॥ हसत वदन हरखे हैयुं । देखी श्रीजिनराय । सुंदर वि प्रनु देहनी । शोना वरणी न जाय ॥ २२ ॥ ज० ॥ अवरतणी एहवी नवि । किहां एम दीसंत । देव तत्त्व ए जाणीये । जिन हर्ष कहंत ॥ २३ ॥ ज० ॥ ढाल ३ जी॥ यत णीनी देशी ॥ श्रीजिनवर प्रवचन लाख्या । जे कुगुरुतणा गुण दाख्या । पासत्यादिक पांचे । पाप श्रमण कह्या साचे॥२॥ गृहीना मंदिरथी आणी । आहार करे जात पाण।। सुए जंघे निशदीस । परमादी वीशवा वीश ॥ २५॥ किरिया न करे किणि वार । पमिक्कमणुं सांऊ सवार । न करे पच्चरकाण समाय । विकथा करंतां दिन जाय ॥ २६ ॥ घृत दूध दहीं अप्रमाण । खाए न करे पच्चरकाण । ज्ञान दर्शनने चारित्र । मूकी दीधां सुपवित्र ॥ २७ ॥ सुविहित मुनि सामाचारी। पाले नहिं ते अणगारी । आहारना दोष वायाल । टाले नहीं किणही कालं ॥ २८ ॥ धबधब धसमस तो चाले । काचे जलें देह पखाले अर्चा रचना वंदावे । वस्त्रादिक शोला बनावे ॥शए॥ परिग्रह वली काका राखे । वलीवली अधिकाने धाखे । माठी करणी जे कहिये । ते सघली जिणमें लहियें ॥३०॥ एहवा जे कुगुरु आरंजी । मुनि साधु कहेवाये दंली । किश् For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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