SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेहनो अकल सरूप । प्रीत करे श्री संघनें । देखामे निजरूप । ॥ ३५॥ गिरु गौमी पास जिन । आपे अरथ मार । सांनिधकरे श्री संघनें । आस्या पूरण हार ॥४०॥ नील पलाणे नील हय । नीलो थई असवार । मारग चूका मानवी। बाट दिखावणहार ॥४१॥ ढाल ॥ वरण अढार तणो लहे जोग । विघन निवारे टाले रोग पवित्र थई समरे जे जाप । टाले सगला पाप संताप ॥४२॥ निरधननें घरि धननो सूत । आपे अपुत्री याने पुत्र । कायर में सूरा पण धरे । पार उतारे खही वरे ॥ ४३ ॥ दो नागीने दे सो नाग । पग विहूणाने आपे पग । गम नहीं तेहर्ने ये गम । मनवंडित पूरे अनिराम ॥ ४ ॥ निरधास्याने घे आधार । जवसायर ऊतारे पार । आरती यानी भारत जंग । धरे ध्यान ते लहे सुरंग ॥४५॥ समस्खां साददीये यद राज। तेहना मोटा अडे दिवाज । बुद्धि होणनें बुद्धि प्रकास । गूंगानें ये वचन विलास ॥४६॥ मुखियांने सुखनो दातार । जय जंजण रंजण अवतार । बंधन तूटे वेमी तणा । श्री पार्श्वनाम अदर समरणा ॥४७॥ दूहा ॥ श्रीपार्श्वनाम अदर जपे। विश्वानर विकराख । हस्ति यूथ दूरेटले । उधरसींह सियाल ॥१॥ चोरतणा जय चूकवें । विष अमृत ऊमकार । विष धरनो विष उतरे । संग्राम जय जय कार ॥४ए। रोग सोग दालि मुख । दोहग दूर पुताय । परमेशर श्रीपासनो । महिमा मंत्र जपाय ॥१०॥ ॥कडखानी चाल ५॥ जितुं जितुं जि उपशम धरी । झी श्रीश्रीपार्श्व अदर For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy