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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( एए) जालं । वलकै वलंतो चलंतो करालं । जिणें फूंक सूकै तरु म्माल मालं ॥ १७ ॥ हला हाल संलोलियं विक्ख लालं । रहै लाल लोचन्न दोजीहवालं । धरंता प्रजू नाम रिदे विचालं । सही साम होवै जिसी फूस मालं ॥१०॥ इति सर्प जय निवारणं । लिमे जूप भूपे अधिक्के अटक्के । खलां हाम तूटै खमग्गां पटक्कै । परां हैवरां पाम नाखै पटक्कै । धुरां सिंधुरां कंधरा जूधटक्कै ॥ १५ ॥ पमै प्राण संधाण वांणे बटक्कै । दुकै केश हाथाल रोसे हटक्कै । कला काल गोले दु नालै जटक्कै । तुटै तुंग मुंमा प्रचंमा तटक्कै ॥ २० ॥ गगेहा सलोहा पता चिटक्कै । मुक्कै सूर ऊंफेम नांखै कटक्कै । प्रनुनाम खेतां सही अटक्कै । कदे बाल वांकी न होवै कटक्कै ॥ २१॥ इति युद्ध जय निवारणं ॥ जतन्ने घणें कोई वैसे जिहां जै । अग्गे जले आइ कुवाय वाजै । घटाटोप मेघा धम्मति गाजै। दुवकै तरंगा विरंगा हु वाजै ॥ २॥ लिचापिच्च लागी ऊमी ताल लाजै । अहो कोइ राखै अचै अम्मकाजै । इसे संकटे जे जपे जैन राजै । सही पारपामें तिके सुरकसाजै ॥ २३ ॥ इति जल जय निवारणं । गर्म गुंबमं गोलकं हीय होमी । हरस्सं खसं उध्रसं गांउ फोमी। टले गोमथी कोढ अम्हार रोमी । महाताप संताप आतंक कोमी ॥ २४ ॥ न होवै कदे कायमें कांई खोमी। सहु आधि व्याधं सही जाश् गेमी। जिनंदं नमैं मन्नमैं मान मोमी । लहै सो सदा सुरक संपत्ति जोमी ॥ २५ ॥ इति रोग जय निवारणं ॥ अमुंग बलेग वले मन्न खोटा । जियां चक्खं चुंची बुझ्या गाल खोटा । वले पाघवांकी लपेटा लंगोटा। For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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