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रमे जी, विह्म कवण आधार नरेसर || संयम ॥ १३ ॥ कुमर जलै सुकुलीश्रिया जी, बहु दुख ए संसार ॥ नेह तुमारो जांगियो जी, जो व्यो संयमनार रे नारी ॥ सँय ॥ १४ ॥ रथ सिविका तब सकी करी जी, कुंवर धारणी माय ॥ श्रेणिकराय व करै जी, चारित्र त्यो रिषिराय रे जाया || सं० ॥ १५ ॥ इम जांगी वैरागियौ जी, वरजै जे नर नारि ॥ करजोमी पूनोजणे जी, ते तरस्यै संसार हे मा० ॥ ० ॥ १६ ॥ इति मेघकुमार सि० ॥
॥ अथ असिज्झाइ निर्णय सज्झाय ॥ श्रावण काती मिगसर मास, पहिली परुवा तीन विभास ॥ चौथी पhar वदि वैसाख, च्यार पुहर सिकाइ जाख ॥ १ ॥ जां लगि होली ऊमे वार, धुंवर परुती दुवै जिवार ॥ जां परचक्रनो जय नवि जाय, तां लग सिकाई कहिवाय ॥ २ ॥ धूलवृष्टि ने केस पाखांण, वरसै तां लग सिज्जाई जांए || ऊँ मल्ल मांहोमांहि जांम, तां लग सिकाई तिए गंम ॥ ३ ॥ जूपति परजव पोहतो होय, जां लग पाट न बैसे कोइ ॥ तां लग बोली वे सिकाइ, सहुको सरदहज्यो मन मांहि ॥ ४ ॥ Tantra ने दिगदाह, एक पोहर सिकाई थाय ॥ निवल मेह तिम जांणो सही, व पहोर सबल जल कही || ५ || चैत्र सुदि पांचम दिन की, परिवा लग सिकाइ वकी ॥ परिवा बीज तीज चांदणी, समीसांक सिकाई गिणी ॥ ६ ॥ आषा नक्षत्र न लागै जांम, गाजवीज असिकाइ ताम ॥ गाज वीज जो हुवे काल, असिकाइ बे पुहर संजाल ॥ ७ ॥
ब्रु० ११
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