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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कवण फल थाय ॥ २ ॥ ( ५२ ) संसार कविदाखे किता । इम जाणी मुज ऊपर महिर करी जीये | बांह ग्रह्यांकी लाज निवा जस दिजिये || ३४ ॥ तारण तर जिहाज विरुद ने ताहरो । तो मानवनो अवतार सफल कर माहरो । जव जव ताहरी सेव चरण सेवक रहूं । तिम करज्यो जगवंत किसुवलि वलि कहूं ॥ ३५ ॥ ( कलश ) इम नगर देसलसर निरंतर बिंबनेट्या सुनमनें । जिन वचने संजम सू पाले दोष टाले दिन दिने । सुविवेक विध पहिराज श्रावक तासु श्राग्रह बहू परे । रुघनाथ मुनिये । कीध रचना अधारे अमोत्तरे || ३६ || इति श्री बेंयांलीस दोष विवरण स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ दश पचक्खाण वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ सिद्धारथ नंदन नमूं । महावीर जगवंत । त्रिग वेग जिनवरू । परषद बार मिलंत || १ || गणधर गौतम तिए समें । पूबे श्रीजिनराय । दश पञ्चक्खाए किसां कह्या । कीयां Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || ढाल || सीमंधर करज्यो मया एदेशी ॥ ॥ श्री जिनवर इस उपदिशे । सांजल गोयम स्वाम | दश पच्चक्खाण कियां थकां । लहिये अविचल गम ॥ ३ ॥ नव कारसी बीजी पोरसी । साढपोरसी पुरिम | एकासा नीवी कही । एकलवा देव ॥ ४ ॥ श्री० ॥ दात बिल उपवासही । एहीज दश पच्चक्खाण । एहना फल सुण गोयमा । जू जूवा करूं वखाण || श्री० ॥ ए ॥ रतनप्रना शरकरप्रना । बालुका तीजी जांए । पंकप्रजा तिम धूमप्रजा । तमप्रजा For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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