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कवण फल थाय ॥ २ ॥
( ५२ )
संसार कविदाखे किता । इम जाणी मुज ऊपर महिर करी जीये | बांह ग्रह्यांकी लाज निवा जस दिजिये || ३४ ॥ तारण तर जिहाज विरुद ने ताहरो । तो मानवनो अवतार सफल कर माहरो । जव जव ताहरी सेव चरण सेवक रहूं । तिम करज्यो जगवंत किसुवलि वलि कहूं ॥ ३५ ॥ ( कलश ) इम नगर देसलसर निरंतर बिंबनेट्या सुनमनें । जिन वचने संजम सू पाले दोष टाले दिन दिने । सुविवेक विध पहिराज श्रावक तासु श्राग्रह बहू परे । रुघनाथ मुनिये । कीध रचना अधारे अमोत्तरे || ३६ || इति श्री बेंयांलीस दोष विवरण स्तवनं संपूर्णम् ॥
॥ अथ दश पचक्खाण वृद्ध स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ दूहा ॥ सिद्धारथ नंदन नमूं । महावीर जगवंत । त्रिग वेग जिनवरू । परषद बार मिलंत || १ || गणधर गौतम तिए समें । पूबे श्रीजिनराय । दश पञ्चक्खाए किसां कह्या । कीयां
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|| ढाल || सीमंधर करज्यो मया एदेशी ॥
॥ श्री जिनवर इस उपदिशे । सांजल गोयम स्वाम | दश पच्चक्खाण कियां थकां । लहिये अविचल गम ॥ ३ ॥ नव कारसी बीजी पोरसी । साढपोरसी पुरिम | एकासा नीवी कही । एकलवा देव ॥ ४ ॥ श्री० ॥ दात बिल उपवासही । एहीज दश पच्चक्खाण । एहना फल सुण गोयमा । जू जूवा करूं वखाण || श्री० ॥ ए ॥ रतनप्रना शरकरप्रना । बालुका तीजी जांए । पंकप्रजा तिम धूमप्रजा । तमप्रजा
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