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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पचीस धनुष पय नमो । वीसम मुनिसुव्रतअरिहंत । वीस धनुष तनु मान कहंत ॥ १०॥ कवीसम नमि जिन राजान । धनुष पनरे तनु रूप निधान । बावीसम श्री नेमि जिणंद। दस धनु दीपे जाण दिणंद ॥ ११॥ तेवीसम श्री पारस नाथ । नील वरन सोहै नवहाय । चौवीसमा जिनवर श्रीवीर । सातहाथ जगनाथ सरीर ॥ १२ ॥ इण परि ए जिणवर चौवीस । प्रणमें प्रहसम धरीय जगीस । तांघर रिद्धि सिद्धि जल रंग । रंगविनय प्रणमें मुनिरंग ॥ १३ ॥ * ॥ ॥ इति श्री चोवीस जिनदेहमान स्तवनं ॥ * ॥ .. ॥ अथ २४ जिन आउ प्रमाण स्तवनं लि०॥ ॥ * ॥ षन देव प्रणमुं जिनराय । लाख चोराशी पूरव आय । बीजो अजित जसु सूत्रे साख । आज बहुत्तर पूरब लाख ॥ १ ॥ तीर्थकर संजव तीसरो । श्रन लाख पूरब सागीरो। अजिनंदन पूरे मन आस ।आन लाख पूरब पंचास ॥ ॥ सुमतिनाथ पंचम जगदीस । आज लाख पूरब चालीस । श्री पदम प्रनुनी ए स्थिति जाण । लाख तीस पूरब परिमाण ॥३॥ श्री सुपार्श्व लाख पूरब वीस । दस लाख पूरब चंदप्रनु ईस । सुविधिनाथ लाख पूरब दोय । इक लख पूरब शीतल थिति होय ॥४॥ श्राउ वरस चोरासी लाख । श्री श्रेयांस तणो श्रुत साख । लाख बडुत्तर वरसां तणो वासु पुज्य परमायुष गीणो॥ ५॥ विमल श्राउ लाख साठि वरीस। वरस अनंत तणो लख तीस । लाख वरस दस धरम जिणंद । लाख For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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