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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) वरस श्रीशांति जिणंद ॥ ६ ॥ वरस सहस थिति पंचाणवे । श्री कुंथुनाथ तणी संजवे । सहस चोरासी र जिन ती । मति सदस पंचावन जी ॥ ७ ॥ वरस संपूरण त्रीस हजार । मुनिसुव्रत परमा उदार । वीस सहस नमि जिन थिति जणी । वरस सस नेमीसर तणी ॥ ८ ॥ पास वरस एकसो सुख कंद | वरस बहुत्तर वीर जिनंद । रुषजतला तेरे अवतार । सात चंद्र संतीसर बार ॥ ए ॥ सुव्रत जव नव नव नेमीस । पार्श्व वीर दश सत्तावीस । त्रिहुं त्रिहुं जव सतरे जगदीस । सगला जव एकसो तीस ॥ १० ॥ सिद्धि लही सहुने धन धन्न | गणधर चवदेसे बावन्न । सहनें मुनि लख हासि । सहस ऊपरे तालीस ॥ ११ ॥ लाख चमाल ग्यांस हजार । मधिक सदु साधवी सोच्यार | श्रावक लाख पचावन धुरे तालीस सहस ऊपरे ॥ १२ ॥ एक कोमि श्राविका सुजगीस | लाख पांच सद्स अमतीस । एसंघ चतुर्विध सहु जिन तणें । रंगविनें प्रण में हितघणें ॥ १३ ॥ * ॥ इति श्री चोवीस जीन श्रायुप्रमाण स्तवनं ॥ ॥ अथ जीव चार भाषा गर्भित स्तवनं लि० ॥ ॥ * ॥ ( 5ड़ा ) भुवन प्रदीपक वीरनमि । किंचित जीव सरूप । कहिसुं पूर्वाचार्य जिम । बालबोध गुरु रूप I ॥ १ ॥ ( देशी सूरती महीनानी ) ॥ एग मुगति बीजा संसारी जीवकुभेद । सत्तानिने सिद्धानं तै रूप अद । संसारी थावर इग तिम त्रस दोय प्रकार | श्रप तेक बाऊ वास्सई थावर धार ॥ १ ॥ फिटक रयण मणि For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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