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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११ ) विद्रुम हिंगुल वलि हरियाल । मणसिल पारो सुवरण आदि धातु नीहाल । सेढी बन्नी अरोटो पलेवो पाखाए । जोकल तुरी श्रो भूमि पाहण जे खाए ॥ २ ॥ सुरमो लूंए जात ए पुढवी काय विछेद | जूमि आकास यस हिम करग चाऊना जेद । हरित घास ऊपर जे जलकण धूंदर तेम । होय घणो दधि प्प काय पण पाहण जेम ॥ ३ ॥ अंगारा काला जोजर तिम उलकापात । अणि कणगविद्युतादिक अगनजीव विज्ञात | उन्नामग उकलिका मंगल वलि मुहवात । शुद्ध गुंज तिम घण तणु वाऊ नेदें ज्ञात ॥ ४ ॥ साधारण पत्तेय वण-रसइ जीव उत्नेय । एग सरीर अनंतजीव साधारण नेय । कंदा अंकुर कुंपल फूल वलि सेवाल । मुंफोमा हत्तिय सरवे जे फल वाल ॥ ९ ॥ गाजर मोथ वथवो थेग पालंको साग । गुपत सिरा सांधा गांवां जाजे सम जाग । काटी माल जुंमिमें रोप्यां पलव थाय । जाल पान इत्यादिक साधारणवण काय ॥ ६ ॥ एग सरीरें एग जीव जे ते प्रत्येक । फूल बाल फल मूल काठ बीजे जिय एक । वण पन्तेय विना जे पांचे पुढवी काय । सयल लोगमें व्यापक अंत मूहर्त्ते श्राय ॥ 9 ॥ सूखमथी ते नियमा दिर्घा निजर न होय । लोका लोक प्रकाश की वलि अलप न कोय । कवमी संख गंगोला लहिगा लटनी जात । कालसी मेहर जोका विज्ञात ॥ ८ ॥ माय बाहा कृम पौरादिक बेडी होय । गोमी माकण जुना कीमा कीमी दोय । दीपक ईली घीवेली गोंगींका जात। चरम जुका गादहिया गोबर कृम उतपात ॥ ए ॥ धान कीमा जिम चोरकीमा गोवाली. For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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