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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) तहे। ईली कुंथुक इंजगोप तेजी एह । वीवू ढंकन जमरा जमरी इंशी च्यार। तीमा माखी मांस मबर कंसारी धार ॥१०॥ कवक मोला मांकमिय पतंग इत्यादिक नेद । नारक तिरिमणु देव पंचेंजी च्यार विद घम्मा वंसा सेला अंजण रिका ज्ञात । मघा माघवई नारग ए नामें सात ॥ ११॥ जलचारी थलचारी ननचारी तिरजंच । म कह सुसुमार मगर गाहा जल अंच । चौपय उरपरि जुजपरि साप जूचारी तेय । तिविहा गाय साप तिम नकुल अनुक्रमे लेय ॥ १२ ॥ खेचर चरम रोमपंखी चमचेक कपोत । मनुज लोकधी बाहिर समुग विगय पंख होत । सरबे जख थल खचर समुहिम गन्जय दोय । कम्म अकम्म नूमि अंतर दीवा मणुजोय ॥ १३॥ असुरा दिक दस होय वाण व्यंतरिया अछ। जोइस पंच वैमाणिय उविहा सुत्ते दिछ । पनरै जेदै सिषकह्या ए जीव प्रकार । तनु मानादिक हिव एहनो कहिसु अधिकार ॥ १४ ॥ देह श्राऊखो एक सरीरें थितनो मांण । प्राण जेहनें जेता तिम वलि योनि प्रमाण । अंगुल नाग असंख सहू एगिंदीकाय । जोयण सहस साधिक पत्तेय वणस्सई काय ॥ १५ ॥ विति चौरिंजी अनुक्रम नक्कि देह ऊंचास । बारे जोयण तीन गाऊ ग जोयण लास । सत्तमना नेरश्या धनुः सय पंचप्रमाण । तेहथी अरध अरध जणा अनुक्रम रयणाण ॥ १६॥ जोयण सहस गनधर मल उरगनो देह । गाऊ धणुहपहुत जूचारी पंखी जेह । खेचर नवधणु जुयंग जरग जोयण नव होय। नव गाऊ परिमाण समुहिम चौपय सोय For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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