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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४६) ऐरवत महा विदेहे नाम सरिखो एह ए । तिणहीज नामें विजय सगली सासता धर्म क्षेत्र ए ॥ २१ ॥ ढाल ॥ धातकी खमे तिम पुष्कर सही। इहां खेत्रांनी रचना विध कही । वारवार कहतां विसतार ए। पहिला पर लेज्यो सुविचार ए॥ ॥जहालो ॥ सुविचार बाकी तेह सगलो नगर तिमहीज मनगमें । पूरवे पछिम जेह नीते तेह तिमहीज अनुक्रमें । श्रीचंबाहु नुजंग ईसर नेम च्यार तीर्थकरा । पूरवे पुष्कर अरध मांहे सरब जीव सुखं करा ॥ २२ ॥ ढाल ॥ वैरसेन वंडं जिन सतरमो श्रीमहाजन अचारमनितनमो देव जसा जगणी सम जिन देव ए । जसो रिच वीसम जिण देव ए ॥ नहालो ॥ जिण च्यार पुष्कर अरध मांहि कह्या पश्चिम नाग ए। तिहां मेरु विद्युन्मालि चिहुं दिसि विचरता वीतराग ए । चौरासी पूरव लाख वरसां श्राउ इक इक जिन तणो । पांचसे धनुष सरीर सोहे सोवन वरण सुहामणो ॥ २३ ॥ ढाल ॥ काल जघन्यै ए जिण वीस ए । हिव उत्कृष्टे लेद कहीस ए । एकसो सत्तरि तिहां जिणवर कहे । पांचे चरते जिम पांचे लहे ॥ नहालो॥ जिण खहे पांचे तेम पांचे ऐरवत मिल दश हुवा । इक इक विदेहे बत्तीस विजयां तिहां पिण जू जूनां । एकसो सत्तरि एम जिनवर कोमि नवसय वलि केवली । नव सहस कोमी अवर मुनिवर वंदीये नित ते वली ॥ २५ ॥ ढाल ॥ इहां जरतें ऐरवतें आज ए, पांचमें आरे नहीं जिन राज ए । धन धन पांचे महा विदेह ए। विचरे वीस जिन गुण गेह ए॥उबालो॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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