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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४७) गुण गेह दोष श्रढार वरजित अतिशया चौतीस ए । चोस दि नरिंद सेवित नमुं ते निसदीस ए । तिहां आज तारण तरण विचरे केवली दोय कोम ए । दोई सहस कोमि सु साधु बीजा नमुं बे कर जोम ए ॥ २५॥ कलश ॥ श्म अढीदीपे पनरकरमानूमि खेत्र प्रमाण ए । सिद्धांत प्रकरण मांह जाप्या वीस विहरमाण ए । श्रीनगर जेशल मेरु संवत सतर गुणतीसे समे । सुख विजय हरष जिणंद सांनिध नेह धरि धर्मसीह नमें ॥२६॥ इति श्रीमेरु पर्वत कर्मजूम्यादि विचार गर्नितं विंशति विहरमाण जिनानां वृद्धि स्तवनं ॥ जंबुद्धीप, धातकी खंम, २ आधो पुष्कर छीप, ३ एवं ॥ वीपमें ए नरत, ५ ऐरवत, ५ महाविदेह, १५ कर्म नूमीमें विचरता सास्वता २० विहर मानकों मेरा नमस्कार होवो ॥ ॥ अथ श्रीशीतल जिन चैत्य प्रतिष्ठा स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ नवि जन पूजो रे शीतल जिन पती रे। नयनानंदन चंद । प्रनुजी विराजे रे सूरत बिंदरे । नंदा देवीना नंद ॥१॥०॥ जगहितकारी रे जिनजी अवतस्या रे । श्रीदृढ रथ नृप गेह । श्रीवच सोहेरे लांउन सूंदरू रे । कनक वर्ण प्रनु देह ॥ ॥ ज॥ विषय निवारी रे संयम संग्रह्यो रे । लाधु केवल नाण। सघन घना घन जिम धर्म वरसतारे । विचस्या त्रिनुवन जाण ॥३॥ नवि० ॥ वेदनी प्रमुख जे शेष रह्या हुतारे । च्यार श्रघाती कर्म । दूर निवास्या रे अनुक्रम तेहनें रे । पाम्युं शिव पद सर्म ॥ ॥ ज०॥ संप्रति कालेरे श्रीजिन राजनो रे। पूजी जेरे प्रति बिंब । प्रतिदिन लहीयेरे प्रनु सुप्रसादथी रे For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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