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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२५ ) ॥ ७ ॥ सांजली हैको कमकमे ॥ गु० ॥ एहवा नारकी दुःख ॥ सु० गु० ॥ जीवजंत मारे प्राणीयो ॥ गु० ॥ किमलहे मुक्ति सुख || सु० गु० ॥ ८ ॥ ॥ दोहा ॥ दस प्रकारनी वेदना । सहेता नारकी जीव । अन्यो अन्ये जुजतां । सहतां दुःख सदैव ॥ १ ॥ अशुभ बंधन शुन गति । शुन संस्थान जे हुं । नेदन छेदन अशुभ वर्ण । सहेतां दुःख प्रचंक ॥ २ ॥ अशुभ गंधने जावो । अशु रस वली जेद । माछो फरस वली कह्यो । मागे गुरुलघु तेह होय || ३ || मागे शब्द वली लह्यो । वेद न दसे प्रकार । त्रैलोक्य दीपकथी जाणजो । जाषी सूत्र मक्कार ॥ ४ ॥ . ॥ तृतीय ढाल || मनडो अडेर रह्यो अभिमाने ॥ साते नरकमां जाणे वेदना । श्रीवीर वखाणेरे मारा नरक तणारे । दुःख सुजो ए की । नहि सूरज नहि चंद्र | नहि पाणी पवन प्रचंकारे ॥ मारा० ॥ १ ॥ माहा घोर अंधकार । थानक पण नहि साररे ॥ मारा || बिहामणी भूमि जाणो । तस फरस खंमा धाररे ॥ मारा० ॥ २ ॥ साते नरके जाण । तस वेदना कहि नवि जावेरे ॥ मारा० ॥ माहा क्रोध धरीने तिहां । हथी चार धरीने वेरे ॥ मारा० ॥ ३ ॥ कातरणी जेसी करे देह । एम चरण करतां तेहरे ॥ मारा० ॥ माहा रौरव शब्दने जाणो । केवली जाणे तेहरे ॥ मारा० ॥ ४ ॥ परमाधामी पचावेरे । वली ऊंधे मस्तके अंगेरे ॥ मारा० ॥ देहने क्षणमां मरोगे । वली तेहनी पूंछे दोमेरे ॥ मारा० ॥ ५ ॥ वैतरणी नदीमां लई आवे । वली पाणी मां जबकांवेरे ॥ 1 For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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