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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४६) नी धारणा होय रे ॥ म० ॥ ६॥ साचो होय ते प्ररूपियै, निस्संक पणे सुजगीस रे ॥ कविविनयचं कहै स्युं थयो, जो कुमती करस्यै रीस रे॥॥॥ इति उपाशकदशांग सज्कायः॥ ॥ अथ ८ ॥ अंतगडदशांग सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ वीर वखाणी राणी चेलणा जी ॥ ए देशी॥ आठमो अंग अंतगमदशा जी, सुणी करो कान पवित्र ॥ अंतगम केवली जे श्रया जी, तेहना रेश्हां आठ चरित्र ॥श्राप ॥१॥ कर्म कठिन दल चूरतां जी, पूरता जगतनी आस ॥ जिनवरदेव इहां नासता जी, सासता अर्थ सुविलास ॥ श्राप ॥२॥ सकल निदेप नय नंगयी जी, अंगना नाव अग्नंग ॥ सहिज सुख रंगनी तटिपका जी, कटिपका जास जवांग ॥ आ॥३॥ एक सुयखंध इण अंगनो जी, वर्ग आठ अनिराम ॥ आठ उद्देसा ने वली जी, संख्याता सहस पद नाम ॥ आ॥४॥ आठमा अंगना पाउमें जी, एहवो अरे मीगस ॥ सरस अनुन्नव रस ऊपजै जी, संपजै पुण्यनी रास ॥ आ० ॥ ५ ॥ विषयलंपट नर जे हुवे जी, निरविषयी सुण्यां थाय, जिम माहा विष विषधरतणो जी, नागमंत्रे सुण्या जाय॥आ॥६॥ अमृतवचन मुख वरसती जी, सरस्वती करो रे पसाय ॥ जिम विनयचं इण सूत्रना जी, तुरत लहै अभिप्राय ॥ श्रा० ॥७॥ इति श्रीअंतगमदशा सूत्र स० ॥ ॥ अथ ९॥ अणुत्तरोवाई अंग सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल ॥ नणदल विंदली लै ॥ए चाल ॥ नवमो अंग अणुत्तरोवाई, एहनी रुची मुझने आई हो॥श्रावक सूत्र सुणो॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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