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(१४५) ॥४॥ बोधिलाल वलि तंत ते अंतकृत्य कही जी, धर्मकथाना दोय ने सूय खंध हो ॥म्हागापहिलाना उगणीस अध्ययन ते आज चै जी, बीजाना दस वर्ग महा अनुबंध हो । म्हा ॥ ५॥ ऊंठकोमि तिहां सकल कथानक जाषिया जी, नाष्या वलि जगए।स उद्देस हो ॥ म्हा० ॥ संख्याता हजार जला पद एहना जी, एह अकी जायै कुमति कलेश हो । म्हा ॥ ६॥ विनय करे जे गुरुनो बहु परै जी, तेहने श्रुत सुणतां बहु फल होय हो ॥ म्हा० ॥ ते रसिया मन बसिया विनयचंधने जी, सो मांहे मिलै जोया एक कै दोय हो ॥ म्हाण ॥ ७॥ इति ज्ञाताधर्मकथांग स० ॥ ॥ अथ ७ ॥ उपासकदशा सूत्र सज्झाय लिख्यते ॥
॥ ढाल विबियानी ॥ हिवै सातमो अंग ते सांजलो, उपा सगदशा नामे चंग रे ॥ श्रमणोपासकनी वर्णना, जसु चंदपनत्ती उपांग रे॥१॥ मन लागो मोरो सूत्रथी, एतो लव वैराग तरंग रे ॥ रस राता ज्ञाता गुण लहै, परमारथ सुविहित संग रे॥ म ॥२॥ण अंगे सुयखंध एक जै, अध्ययन उद्देस विचार रे ॥ दस ५ संख्यायें दाखव्या, पद पिण संख्यात हजार रे ॥म० ॥ ३॥ आनंदादिक श्रावकतणो, सुणतां अधिकार रसाल रे ॥ रसलागे जागे मोहनी, श्रोताजनने ततकाल रे ॥ म० ॥४॥श्रोता बागल तो वांचतां, गीतारथ पामे रीकं रे ॥ जे अर्धदग्ध समजै नही, तेहसुं तो करवी धीज रे ॥ म० ॥५॥ दस श्रावक तो यहां जाषिया, पिण सूत्र जएयो नही कोय रे ॥ ते माटे शुद्ध श्रावक जणी, एक अरथ
वृ० १०
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