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(२७५) आवी कीजियें काउसग्गरली॥त्रण ज्ञान दरसन चरण टीकी दे पुस्तक पूजियें । थापना पहिली पूज केशर सुगुरुसेवा कीजियें ॥ १ ॥ दाल ॥ सिद्धांतनी रे पांच परत वीटांगणा। पांच पूगरे मुखमल सूत्र प्रमुख तणा ।। पांच मोरारे लेखण पांच मजीसणा । वास कूपारे कांबी वारू वरतणा ॥ उबालो। वरतणा वारू वलीय कमली पांच किलमिल अति नली। स्थापना चारिज पांच उवणी मुहपत्ती पम पाटली ॥ पट सूत्र पाटी पंच कोथल पंच नवकरवालियां । इण परें श्रावक करे पांचमी ऊजमणुं उजवालियां ॥३॥ ढाल ॥ वलि देहरे रे स्नात्र महोत्सव कीजियें॥घर सारूरे दान वलि तिहां दीजियें ॥ प्रतिमाजीनेरे आगल ढोवणुं ढोइये । पूजानारे जे जे उपगरण जोये ॥ उबालो ।। जोश्ये उपगरण देवपूजा काच कलश शृंगारए । आरति मंगल थाल दीवो धूप धाणुं सारए ॥ धन सार केशर अगर सूकम अंगलूहणो दीस ए । पंच पंच सघली वस्तु ढोवो सगति शुं पचवीश ए॥ ३ ॥ ढाल ॥ पांचमीतारे साहम्मी सर्व जिमानिये । रात्रि जोगेरे गीतरसाल गवामिये ॥ इण करणी रे करतां ज्ञान आराधियें । ज्ञान दरिसरे उत्तम मारग साधिये ॥ उहालो ।। साधियें मारग एह करणी ज्ञान लहिये निरमलो।सुरलोकनें नरलोकमांहि ज्ञानवंत ते आगलो । अनुक्रमें केवल ज्ञान पामी सासता सुख जे लहे । जे करे पंचमी तप अखंमित वीरजिनवर इम कहे ॥४॥ कलश ।। इम पंचमी तप फल प्ररूपक वर्षमान जिनेसरो ॥ में श्रूण्यो श्रीअरिहंत जगवंत । अतुल बल अलवसरो॥ जयवंत श्रीजिन
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