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(२१७) नारकीने ए। कोम वरस कही ए॥ ६॥ ज्ञान तणो अधिकार । या सूत्र मकार ॥ किरिया ने सहीए ॥ ७ ॥ पण पानें कही ए॥ किरिया सहित जो ज्ञान । हुवे तो अति परधान ॥ सोनोने सूरो ए । शंख दूधे जयो ए ॥ ॥ महा निशीथ मकार । पंचमी अदर सार ॥ लगवंत जाखीयो ए गणधर साखियो ए ॥ ए॥
॥ ढाल २ जी॥ कालहरानी एदेशी ॥ पंचमी तप विधि सांजलो । जिम पामो लव पारो रे । श्री अरिहंत श्म उपदिशे। नवियणने हितकारो रे ॥ पंच० ॥१॥ मिगसर माह फागुण जला । जेठ आषाढ वैशाखो रे ॥ण षटमासें लीजियें । शुजदिन सशुरु साखो रे ॥ पंच० ॥२॥ देव जुहारी देहरें । गीतार्थ गुरुवंदी रे ॥ पोथी पूजो ज्ञाननी सगति हुवेतो नंदी रे ॥ पंच० ॥ ३॥ बेकर जोमी लावशुं । गुरू मुख करो उपवासो रे ॥ पंचमी पमिकमणो करो। पढो पंमित गुरु पासो रे ॥४॥ जिण दिन पंचमी तप करो। तिण दिन आरंज टालो रे ॥ पंचमी स्तवन थुई कहो । ब्रह्मचारिज पिण पालो रे ॥ ५॥ पंचमास लघु पंचमी । जावजीव उत्कृष्टीरे ॥ पांच वरस पंचमासनी । पंचमी करो शुन दृष्टि रे॥६॥
॥ढाल ३ जी॥ हिव नवियणरे पंचमी ऊजमणो सुणो । घर सारूरे बारू धन खरचो घणो ॥ए अवसररे श्रावंतां वलि दोहिलो । पुण्य जोगेरे धन पामंतां सोहिलो ॥ उबालो ॥ सोहिलो वलिय धन पामंतां पण धर्मकाज किहां वली। पंचमी दिन गुरु पास
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