________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२५३) रुजी। श्रीसकमाल सुपुत्र ॥श्री०॥३॥लाउनदे नंदन नलो॥ मुनि गुण निलोजी। नागर विज कुलदीप ॥ श्री ॥४॥ श्रीसंजूतिविजयगुरु । पूरव धरुजी ॥ ब्रतलीधा सुपास ॥ श्री ॥ ५॥ कोश्यावश्या प्रतिबोधवे । सशुरु तवेजी । उक्कर मुक्कर कार ॥ श्री ॥ ६॥ चौद पूरव शिष्यो वली । श्रुत केवली जी। श्री जत्रबाहु समीप ॥ श्री० ॥ ७॥ संयम पाल्यो निर्मलो। त्रिविधं ललो जी। जंगम युग प्रधान ॥ श्री० ॥॥ पंचमास पंचदिन सही। ऊपर कही जी ॥ वरस नवाणु याय ॥ श्री० ॥ ए॥ करि अणसण आराधना । शुन्न वासना जी। पहोता स्वर्ग मकार ॥ श्री० ॥ १० ॥ चुलसी चोवीशी लगें। जस जगमगे जी॥ रहेशे जेनुं नाम ॥ श्री ॥ ११॥ वसु युग वसु चंड वत्सरे १७२७ पामली पुरे जी ।जसु पद थापना कीध ॥ श्री॥१२॥ वाचक अमृत धर्मनो । श्रुणे शुनमनो जी॥ शिष्य दमाकट्याण ॥ श्री० ॥ १३ ॥ इति श्रीथूलि जाजीनी सकाय संपूर्णा ॥ ॥ अथ श्रीदेव चंद्रजीकृत अष्ट प्रवचन मातानी
सझाय लिख्यते ॥ ॥ दोहा ॥ सुकृत कट्पतरुश्रेणिनी । वर उत्तरकुरु जोमि । अध्यातम रस शशिकला । श्रीजिनवाणी नौमि ॥ १॥ दीपचंद पाठक सुगुरु । पदवंदी अवदात । सार श्रमणगुणनावना गाशुं प्रवचन मात ॥२॥ जननी पुत्र जिम शुनकारी । तिम ए पवयणमाय । चारित्र गुणगणवर्षिनी । निर्मल शिव सुखदाय ॥३॥ नाव अयोगी करण रुचि । मुनिवर गुप्ति
For Private And Personal Use Only