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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२३ ) पच्चीस देरियां सोजित | सिरे काम सिंघासणका ॥ १३ ॥ मूल नायक के ऊपर सोहै । सहस फणा प्रभु पारसका । चौमुखकी चतुराई वणी है । बहू काम है सारसका । अढारसें पैंसव सवाई | मुहूर्त्त फागण मास जला । सुदी तीजकूं तखते बेठे । जगो जगो पर नाम चला || १४ || देश देशके संघ बहु मिलकर । तेरे दर्शनकुं आया । जगतगुरु जिनराज जगतमें । वमी तेरी अक्कल माया ॥ धर्मचंद जोगता सवाईने । वमा साहमी वात्सल्य किया । सकल संघकी आज्ञा लेकर । वमा शिखर निशान दीया ॥ १९ ॥ करमचंद ने देवचंद ने खेमचंद ने खुब किया || पारस नायकूं तखत बैठा कर । जगो जगो पर नाम किया । कीर्त्तिविजय गुरुराजकूं प्रणमूं । पाय गुरुका राजवा || गुलाबचंद साहेब के आगे ॥ जिनसासनका कामवा ॥ १६ ॥ तेजा गाता चंग रंगमें | ज्ञान ध्यानसें खमा खमा । हाथ जोमके अरजी करता । पारसनाथजी तूंही वमा। ant काम तेरे है साहिब । मुखसें नहिं कहणे आता ॥ शिवरमणी कुंवरी है जिनजी । जविजन कुं सुखके दाता ॥ १७ ॥ इति श्रीकल्याण पार्श्वजी की लावणी संपूर्ण || ॥ अथ श्रीउपाध्यायक्षमाकल्याणजी कृत श्रीथूल भद्रसूरिजीनी सझाय लिख्यते ॥ तीरथ ते नमूरे ॥ एदेशी || श्रीमहावीर जिनेसरु ॥ त्रिभुवन गुरुजी ॥ तसु अम पटधार | श्री धूलिननमो ॥ १ ॥ पारुलीपुर सोहामणुं । महिमंमपुंजी ॥ तिहां पायो अवतार ॥ श्री० ॥ २ ॥ नंद नरिंद मंत्री श्वरु | गुण आग - For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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