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(३५),
॥ अथ ८४ आसातना स्तंवन लि०॥ ॥ ढाल ॥ विलसै शधिनी ॥ जय जय जिण पास जगत्र धणी । सोला ताहरी संसार सुणी । आयो हुँ पिण धर आस घणी । करिवा सेवा तुम चरण तणी ॥१॥ धन धन जे त पके जंजाले । उपयोग सुं बैसै जिन आले । बासातना चउरासी टाले । सास्वता सुख तेहीज संलाले ॥२॥ जे नाखे श्लेखम जिनहरमें । कलह करे गाली जूयरमें । धनुषादि कला सीखण इके । कुरखो तबोल नखे थूके ॥ ३॥ सुरे वायवी लघुनीत तणी । संका कुंगुलिया दोष सुणी । नख केस समारण रुधिर क्रिया । चांदीनी नाखे चांबमिया ॥ ४ ॥ दांतणनें वमन पीये कावो। खावे धाणी फुली खावो । सूवे वेसा मण विसरावे । अज गज पशुनें दामण दावे ॥५॥ सिर नासा कान दसन आखे । नख गाल वपुषना मल नाखे। मिखणो लेखो करे मंत्रणो । विहचण अपणो करि धन धरणो ॥६॥ वेसे पग ऊपरि पग चढियां । थापे गंणा उमे ढूढणीयां । सूकवे कप्पम पप्पम मियां । नासीय रिपे नृप जय पमियां ॥ ७॥ शोके रोवे विकथाज कहै । इहां संख्या बेतालीस खहै । हथियार धमेनें पशु बांधे । तापें नांणों परखे रांधे ॥७॥ जांजी निसही जिनगृह पेसे । धरे बबनें मंम्प में बसे । पहिरे वस्त्र अनें पनही । चामर वीकें मन गम नहीं ॥ ए तनु तेल सचित्त फल फूल लीये । नूषण तजि आप कुरूप थीये । दरसपथी सिर अंजलि न धरे । ग सामे उत्तरा संग न करे ॥१०॥ गेगो सिर पेच मोम जोमे। दमिये रमनें
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