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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१६ ) चौरासी अंग । करी मलोखा गारुखी । श्राये धूलेव सुरंग ॥ २६ ॥ चाल लावणी ॥ गांव धूलेवा वंश जालमें । गुप्त रहे हें प्रनुधरती गाय एक कोमी वनियन की । इ वाहां चरती चरती स्रवे तिहा पयधारा शिरपर साफ समे फिर नहि दुजे ॥ री सकरी तब गोपालन पर । गोपाल थरहर धूजै | दूजे दिन गौलारे आयो । लह्यो नेद को बनियनपें । शेठ श्राय जब नजरे देख्यो । चकित जयो हे तन मनपें ॥ २७ ॥ मध्य रातमे सुपनो दीनो । रुषज नाथकी मूरत है । afer निकास करो लापसी । जीतर मूरत पूरत है ॥ २८ ॥ नव दिन में सब घाव मिलासी । मत काढे तूं नव दिनमें । कियो शेठने हुकम प्रमाणे । ये संघ बहु ब दिनमें ॥ २५ ॥ के उपवासी के व्रतधारी के अलु आणे पांव चले । केड़ लोककूं डुक्कर बाधा । कब प्रजुको दरशन मिले ॥ ३० ॥ यूं सब लोकां दरस तरस की । कहे लोक मूरति काढो । लाओ लाओ महाराजकी मूरत । संघ सबे लीनो श्रमो ॥ ३१ ॥ जवर दस्तसें दिवस सातमें । लापसी बाहिर तब कीने । स स जर रहाए । संघ लोक दर्शन दीने ॥ ३२ ॥ फिर सुपने में प्रव्य दिखायो । संघे मिल देवल कीनो । मध्ये विराजे षन तखत पर | कलियुगमें यो जस लीनो ॥ ३३ ॥ डुहा ॥ संवत ढारे तेसवे । जान सदा शिवराय । कियो धगानो कुष्टने जाखं वरण वनाय ॥ ३४ ॥ मोतीदाम बंद ॥ सदा शिवराय चिंते मनएह लूंटे बहु धाम जमीपर जेह । जिल्लांपति नाथ धूलेव कहाय लखो लग द्रव्य जंकार सुणाय ||३५|| जावां अब लूंटा गाम धूलेव । ग्रनुं सब माल जई ततखेव । 1 For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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